भारी-भरकम संविधान का यह छोटा-सा हिस्सा इस कदर सामूहिक मानस में बस गया था कि लोग उससे इतर सोच नहीं पाते थे. हालांकि, बीतते हर दशक के साथ अनुच्छेद 370 और इसके तहत कश्मीर को हासिल विशेष दर्जे ने अपनी प्रासंगिकता खो दी थी. अब 11 दिसंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले (जिसमें अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने को बरकरार रखा गया) ने इस मसले को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है.
अब असल चुनौती यह है कि टिकाऊ और सामूहिक शांति के जरिए सभी हितधारकों को इस मसले के राजनैतिक समाधान पर राजी किया जाए. अब अनुच्छेद 370 लगभग स्थायी तौर पर इतिहास के पन्नों में दफन हो जाने के बाद पांच ऐसे कदम हैं जो उठाए जा सकते हैं और उठाए भी जाने चाहिए ताकि सही मायने में नए जम्मू-कश्मीर की नींव रखी जा सके.
सबसे पहला और अहम कदम तो यही कि राज्य में लोकतंत्र की जल्द से जल्द वापसी हो. जम्मू-कश्मीर में पिछला चुनाव करीब एक दशक पहले हुआ था. पिछले पांच साल से वहां कोई निर्वाचित सरकार नहीं है. हालांकि, स्थानीय निकाय चुनाव जरूर हुए पर वे विधिवत गठित विधानसभा का विकल्प नहीं हैं और न हो सकते हैं. वैसे तो मुख्यधारा के सियासी दल पूरी शिद्दत से बहिष्कार पर अड़े हैं लेकिन इसमें दो राय नहीं कि एक बार मामला पूरी तरह शांत होने के बाद लगभग सभी चुनाव का हिस्सा बनने को तैयार हो जाएंगे.
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