लज गता है, तेलंगाना के पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री अनुमुला रेवंत रेड्डी हड़बड़ी में हैं. हैदराबाद के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में 7 दिसंबर को शपथ लेने से पहले ही उन्होंने यह पक्का किया कि अधिकारी मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर लगी लोहे की उस ऊंची बाड़ को गिरा दें जो पहले दीवार का काम करती थी. इसे प्रगति भवन कहा जाता था. अब इसका नाम बदलकर प्रजा भवन रख दिया गया है. यह तेलंगाना की "पहली जन सरकार" के अनुरूप है, जो रेड्डी अपनी नवनियुक्त सरकार को कहते हैं. इस तरह रेड्डी ने चुनाव से पहले किया गया अपना पहला वादा पूरा कर दिया है. इसके असरदार तरीके और सही वक्त ने दिखा दिया कि वे लोगों के लिए सुलभ हैं. इसके उलट उनके पूर्ववर्ती के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) को इतना सुलभ नहीं माना जाता था. रेड्डी को प्यार से रेवंतन्ना कहा जाता है और उनके पास गंवाने को वक्त नहीं है. संसदीय चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और उसके बाद राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे.
कांग्रेस का सबसे पहला काम शानदार चुनावी जीत के जोश और रफ्तार को बनाए रखना और 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा उठाना है. मतदान के पैटर्न को देखते हुए कांग्रेस लोकसभा की 17 सीटों में से नौ सीटें जीत सकती है. हालांकि रेड्डी के सामने इससे बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है.
मुख्यमंत्री एक बार मतदाताओं से जुड़ने के लिए आक्रामकता और भावनाओं की मिली-जुली भाषण कला पर भरोसा करेंगे. हालांकि रेड्डी बांह चढ़ाए रहते हैं लेकिन उनके बोले हर शब्द के पीछे एक होमवर्क होता है. चुनाव अभियान के दौरान भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के खिलाफ लगाए गए आरोपों की पहले पड़ताल कर ली गई थी. केसीआर के बेटे और मंत्री के. टी. रामाराव के फार्म हाउस बनाने में कथित तौर पर हुई अनियमितता की बात सामने आने पर रेड्डी ने जांच के लिए ड्रोन वहां उड़ाया था. तेलंगाना जन समिति के उपाध्यक्ष पी.एल. विश्वेश्वर राव कहते हैं, "उनका युवा और गतिशील होना ही उनकी ताकत है." उनके सहयोगी मानते हैं कि रेड्डी उदार हैं और उनमें आगे बढ़कर नेतृत्व करने की स्वाभाविक काबिलियत है.
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"