| जस्टिस डी. वाइ. चंद्रचूड़ | 64 वर्ष | भारत के प्रधान न्यायाधीश |
अमूमन ऐसा नहीं होता है कि उच्च न्यायपालिका जैसे प्रतिष्ठित क्षेत्र का काला चोंगाधारी कोई व्यक्ति सुर्खियां बटोरने के मामले में कुछ सख्त और उतार-चढ़ाव भरे राजनैतिक और ऐसे ही कुछ अन्य पेशों से जुड़े लोगों को पीछे छोड़ दे और वह भी अपनी विश्वसनीयता भरी धमक के साथ. लेकिन जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने जब नवंबर, 2022 में भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली, तब एक महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू हो चुकी थी. और संयोगवश वे एक सही समय पर क्लोज सर्किट के असीमित संसार में चमकने वाले सही व्यक्ति बन गए. न तो उनके व्यक्तित्व का कानूनी अधिष्ठाता की तुलना में अधिक चेतन समाजशास्त्रीय पहलू इसमें आड़े आया और न ही उनकी व्यक्तिगत आस्था ही इसमें बाधा बनी. अपने इर्द-गिर्द बनती धारणा को और पुख्ता करते हुए उन्होंने शुरुआत में ही साफ कर दिया कि उनके मार्गदर्शन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को अधिक तरजीह मिलेगी. नैतिक प्रतिबद्धता को कार्यशैली का हिस्सा बनाने में वे पीछे नहीं रहे - प्रत्येक कार्यदिवस पर जमानत और केस ट्रांसफर से जुड़ी 10-10 याचिकाओं की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा एक व्यवस्था कायम की. जब तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजीजु ने इस पर आपत्ति जताई कि सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक कोर्ट को जमानत और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए तो सीजेआइ का दो-टूक जवाब था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में तत्परता दिखाना और राहत देना इस कोर्ट के लिए एक तरह से बाध्यकारी है. साल 2023 के आगे बढ़ने के साथ उन्होंने एक के बाद एक कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए और यह सुनिश्चित किया कि उनकी अनुगूंज सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट सुनाई दे. इससे धीरे-धीरे ही सही, एक ऐसी भावना भी मुखर हुई कि न्यायिक प्राचीर से कार्यपालिका की रेतीली जमीन पर गहरी संवैधानिक रेखाएं उकेरने की तैयारी कर ली गई है. हालांकि, साल बीतने के साथ इसमें कमी आती गई.
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