हाल के हफ्तों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्दा उठाया तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) की संभावनाओं और उसके दुरपयोग पर बहस छिड़ गई. हालांकि शायद कम ही लोग जानते होंगे कि प्रधानमंत्री के हर महीने 40 भाषाओं में प्रसारित होने वाले रेडियो प्रोग्राम मन की बात से एआइ और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) के शोध में प्रेरणा मिली है. इसके ऑडियो, वीडियो और ट्रांसक्रिप्ट के डिजिटल आर्काइव से हैदराबाद के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और आइआइटी कानपुर के शोधार्थियों के बीच दिलचस्प साझेदारी शुरू हुई. उन्होंने मन की बात को भारतीय भाषाओं में बहुभाषिक टेस्ट सेट के रूप में लिया, ताकि भारतीय भाषाओं के अनुवाद के लिए एक बेसलाइन स्थापित की जा सके और उससे न्युरल मशीन ट्रांसलेशन (एनएमटी) टेक्नोलॉजी तैयार की जा सके. उसके कुछ साल बाद चैटजीपीटी और जेनरेटिव एआइ का मौजूदा तहलका दुनिया भर में मचा विभिन्न भारतीय भाषाओं में मल्टीमीडिया कंटेंट की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध खजाने को लेकर ये शुरुआती कोशिशें ही भारत में एआइ की हालिया प्रगति के केंद्र में हैं, जो आज सुर्खियों में छाई हुई हैं.
कुछ हफ्तों पहले दीवाली पर भाजपा दफ्तर में प्रधानमंत्री ने मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान पहली दफा सार्वजनिक तौर पर एआइ-जनित डीपफेक के खतरों और दुष्प्रभावों को लेकर आगाह किया था. मोदी ने विस्तार से बताया था कि कैसे वे खुद एआइ से बनाए एक फर्जी वीडियो के शिकार बने थे. डीपफेक के खतरों को लेकर आगाह करने और भाषाई सीमाओं को तोड़ने के वादे के बीच प्रधानमंत्री का जिक्र इस बात को रेखांकित करता है कि भारत में इस विषय पर बहस कैसे प्रौद्योगिकी के गलियारों बाहर से निकलकर मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश कर चुकी है.
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