तीन पीढ़ियों का नजरिया
अप्रैल की 19 तारीख को 18 वर्षीया मानसी ने पहली बार मतदान किया. उनका परिवार भाजपा और कांग्रेस के समर्थन को लेकर बंटा हुआ है. ऐसे में प्रथम वर्ष की छात्रा मानसी ने अपनी पसंद खुद तय करने का फैसला किया. मगर जिस पार्टी को मानसी वोट देना चाहती थी, उसका उम्मीदवार उसे सही नहीं लगा और एक पल के लिए तो उसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर नोटा दबाने पर विचार किया. आखिरकार उसने क्या किया, उसका खुलासा उसने नहीं किया.
मानसी की मां अदिति महज 15 साल की थीं और 10वीं कक्षा में पढ़ती थीं, जब उनकी शादी सीकर के त्रिलोकपुरा गांव में कर दी गई. 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद वे अपने पति के पास जयपुर आ गईं और अपना ग्रेजुएशन पूरा किया, राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर, पत्रकारिता में डिग्री तथा वित्त और बैंकिंग में पीजी डिप्लोमा पूरा किया. अदिति अब ट्रेडमार्क और सोसाइटी पंजीकरण के लिए परामर्श एवं सेवाएं प्रदान करने वाली एक फर्म चलाती हैं. वे सांप्रदायिक विभाजन के सख्त खिलाफ हैं और उनका मानना है कि किसी भी पार्टी ने महिलाओं के लिए कोई भी प्रभावी काम नहीं किया है. उनका कहना है कि उनका वोट उस पार्टी को जाएगा जो सभी को विकास और सद्भाव के साथ रहने के लिए अनुकूल माहौल प्रदान करेगी.
मानसी की दादी मोहिनी अभी भी त्रिलोकपुरा में आठ परिवारों की ढाणी में रहती हैं. अधिकतर परिवार जिसे वोट देता है, मोहिनी का वोट भी उसे ही जाता है. मगर वे कुछ चीजों की मांग करती हैं: उनके घर तक जाने वाली सड़क को ठीक करना और पानी की कमी को दूर करना. वे कहती हैं, "जब हम उन्हें वोट देते हैं तो उन्हें ये बुनियादी सुविधाएं प्रदान करनी होगी. वैसे, अंततः यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरपंच क्या चाहता है."
मेरा वोट स्त्री सशक्तीकरण को
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"