अप्रैल के आखिरी दिनों की बात है. पंजाब के नकोदर विधानसभा क्षेत्र का थम्मनवाल गांव. रविवार की दोपहर यहां आम तौर पर शांत और आरामतलब होती हैं. मगर आज काफी गहमागहमी थी. पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जालंधर के पूर्व सांसद दिवंगत संतोख सिंह चौधरी की पत्नी करमजीत कौर चौधरी के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में दलबदल के नतीजों से जूझ रहे थे. चन्नी इस लोकसभा चुनाव में जालंधर से कांग्रेस के उम्मीदवार भी हैं. हड़बड़ी में बुलाई बैठक में उन्होंने असंतुष्ट प्रतिनिधियों को मनाने की कोशिश की. उनमें से ज्यादातर फिल्लौर से आए थे, जहां से करमजीत के बेटे विक्रमजीत विधायक हैं. (विक्रमजीत को उसके बाद पार्टी के तमाम पदों से निलंबित कर दिया गया). मीलों दूर पटियाला में पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वाडिंग भी नुक्सान पर काबू पाने में जुटे थे. वे स्थानीय नेताओं को समझा-बुझा रहे थे कि आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व सांसद धरमवीर गांधी को मैदान में उतारने का पार्टी आलाकमान का फैसला स्वीकार कर लें. गांधी के कट्टर वामपंथी विचारों को लेकर कांग्रेस के कई नेता असहज महसूस कर रहे हैं.
पंजाब का सियासी फलक लगातार उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. यह उथल-पुथल इससे और तीव्र हो गई कि आप के उभार और एसएडी - भाजपा का गठबंधन टूटने के बाद कभी दो पांरपरिक दिग्गजों कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के बीच दो-ध्रुवीय प्रतिद्वंद्विता अब चतुष्कोणीय मुकाबले में बदल गई है. इस सबके बीच संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान की अगुआई वाले एसएडी (अमृतसर) सरीखे अकाली धड़े और 2022 में एसएडी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली दलित-बहुल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी चुनिंदा सीटों पर राजनैतिक स्थान पाने की जद्दोजहद कर रही है. उधर, पिछले अप्रैल में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किए जाने के बाद असम की जेल में बंद सिख उपदेशक और 31 वर्षीय कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से निर्दलीय चुनाव लड़ने के मंसूबे का ऐलान कर इस कड़ाहे को और भी खौला दिया है.
कांग्रेसः मुश्किल चुनौती
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