अगर किसी ने पहले ज्यादा गौर न किया रहा हो तो 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक तौर पर उसके लिए खासी चौंकाने वाली रही होगी. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सीटें 303 से घटकर 240 पर आ गईं और नरेंद्र मोदी सरकार का कद भी उसी अनुपात में नीचे आ गया तो वाद-संवाद के तौर-तरीकों में भी थोड़ा बदलाव आना लाजिमी था. भले ही सब कुछ पूरी तरह न बदला हो, मगर इसने एक ऐसे दौर की शुरुआत जरूर कर दी है, जिसमें सत्तारूढ़ दल को अपनी आलोचना सुनने की आदत डालनी होगी. बहरहाल, आलोचना के सुर अगर विपक्ष की तरफ से उठते तो कुछ भी असामान्य नहीं था. मगर भाजपा को खरी-खोटी सुनाने में उसके वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शीर्ष पदाधिकारी आगे रहे.
चेतावनी भरे लहजे में इसकी शुरुआत करने वाले खुद सरसंघचालक मोहन भागवत थे. उसके बाद आरएसएस के दिग्गज इंद्रेश कुमार और कुछ दूसरे पदाधिकारी भी पीछे नहीं रहे. उनके सुर कुछ इस कदर तीखे थे कि बयानों ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं और कई तरह की अटकलें भी आकार लेने लगीं. आम तौर पर भाजपा-आरएसएस को एक-दूसरे के जोड़ीदार की तरह देखा जाता है, जिसे लोग अक्सर एक इकाई भी मान लेते हैं. क्या यह वाकई मुमकिन है कि दोनों में कलह हो सकती है? क्या बिना आग के धुआं उठ सकता है? अब जब इस जुबानी जंग का दौर थोड़ा थमा है और ऊपर से सब शांत नजर आ रहा है, अंदरूनी सूत्र कुछ वक्त के लिए आए उस उबाल के निहितार्थ समझने को लेकर आगाह करते हैं. उनके मुताबिक, स्वाभाविक तौर पर यह दीर्घकालिक संतुलन साधने की कवायद है.
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"