अधेरी रात में भारी बारिश के बीच बड़े पैमाने पर भूस्खलन ने हर तरफ हाहाकार मचा दिया. 30 जुलाई को केरल के पहाड़ी क्षेत्र वायनाड में हुई इस तबाही में मुंडक्कई और चूरलमाला गांवों का नामोनिशान मिटा दिया और 1 अगस्त तक कम से कम 289 लोगों की जान चली गई. यही नहीं, 200 से ज्यादा लोग लापता हैं. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कई स्तर पर अनदेखी के कारण यह त्रासदी तो होनी तय ही थी. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक, राज्य भूस्खलन के प्रति काफी संवेदनशील है और देश में सबसे ज्यादा भूस्खलन यहीं होते हैं. देश में 2015 से 2022 के बीच 3,782 भूस्खलनों में से 2,239 केरल में हुए हैं.
माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी पर रिपोर्ट पेश करने वाली विशेषज्ञ समिति का हिस्सा रहे पर्यावरणविद् वी.एस. विजयन कहते हैं कि वायनाड में जो कुछ हुआ, वह ऐसी आपदा है जिसे "हमने खुद बुलावा दिया है. " यह उन राज्यों के लिए एक चेतावनी है, जो समग्र जोखिम आकलन के बिना पहाड़ी ढलानों पर अनियंत्रित निर्माण की अनुमति देते हैं. 2011 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई गाडगिल रिपोर्ट में वायनाड में बेहद खूबसूरत व्यथिरी, मनतवडी और सुल्तान बाथरी तालुका को पर्यावरण के नजरिए से संवेदनशील क्षेत्र-1 (ईएसजेड-1) की श्रेणी में रखा गया था. इसका मतलब है कि यह क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और इसलिए भूमि उपयोग में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. व्यथिरी ताल्लुका में मेप्पाडी उन 18 ईएसजेड में एक है, जिन्हें गाडगिल समिति ने चिह्नित किया था और यह भूस्खलन का शिकार बने मुंडकई और चूरलमाला से महज 2-3 किलोमीटर ही दूर है.
समिति ने सिफारिश की थी कि उत्खनन और लाल श्रेणी के उद्योगों (जिनका प्रदूषण सूचकांक स्कोर 60 या उससे अधिक है) को ईएसजेड-1 में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसके अलावा, जहां खनन की अनुमति है, वहां से मानव बस्तियों की दूरी कम से कम 100 मीटर होनी चाहिए. हालांकि, विजयन कहते हैं कि राज्य सरकार ने दूरी की यह सीमा घटाकर 50 मीटर कर दी है. भौगोलिक परिदृश्य में बदलाव, पर्यटक रिजॉर्ट की बढ़ती संख्या और अंधाधुंध खनन से जमीनी हालात में जिस तरह के बदलाव हुए, उसका नतीजा यही होना था.
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