अप्रैल-जून की अवधि के दौरान हुए लोकसभा चुनाव में आर्थिक मुद्दे - रोजगार का अभाव, वस्तु और सेवाओं की ऊंची कीमतें और अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई के साथ-साथ अन्य मसले मुख्य रूप से छाए रहे और इन्होंने नतीजों को खासा प्रभावित किया. सभी राज्यों में इन मसलों पर मतदाताओं की व्यापक चिंता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को महंगी पड़ी और लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें घटकर 240 रह गईं जो पार्टी की 370 की उम्मीदों से काफी कम हैं.
लिहाजा, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि मौजूदा इंडिया टुडे देश का मिज़ाज (एमओटीएन) सर्वेक्षण में केवल 20 फीसद उत्तरदाताओं ने ही अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए एनडीए सरकार को 'उत्कृष्ट' बताया. यह फरवरी में हुए सर्वेक्षण अच्छी खासी गिरावट है जिसमें 32.4 फीसद ने यह रेटिंग दी थी. इतना ही नहीं, मौजूदा सर्वेक्षण में उच्च शिक्षित उत्तरदाताओं ने सरकार के आर्थिक प्रदर्शन को 'बहुत खराब' के रूप में बताया है.
वृद्धि का दर्द
विडंबना यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार के आर्थिक प्रबंधन को लेकर जन धारणा बदल गई है, वह भी तब जब अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 24 में 8.2 फीसद की चौंकाने वाली उच्च वृद्धि दर हासिल की. अर्थव्यवस्था न केवल कोविड- 19 महामारी से उबर चुकी है, बल्कि पूंजी खर्च में सरकार के लगातार निवेश और खुदरा क्षेत्र में भारी उछाल से वृद्धि दर के इस वित्त वर्ष और अगले साल करीब 7 फीसद पर बरकरार रहने की संभावना जताई गई है. मगर, ये मुख्य आंकड़े हैं और जमीनी धारणाओं से एकदम विपरीत हैं. देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में जो लोग यह मानते हैं कि अर्थव्यवस्था सुस्त बनी रहेगी या और खराब होगी, उनका कुल आंकड़ा अच्छा-खासा 50.6 फीसद है. असल में, यह निराशा निराधार नहीं है क्योंकि अभी जारी दो युद्धों और विकसित देशों की मंद पड़ती अर्थव्यवस्थाओं सरीखी चुनौतियों की वजह से ऊंची वृद्धि को बरकरार रखना मुश्किल हो सकता है.
सिर्फ 38 फीसद उत्तरदाता इस पर आश्वस्त हैं कि अर्थव्यवस्था में अगले छह माह में सुधार होगा. इतना ही नहीं, महज 33 फीसद कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उनका आर्थिक स्तर सुधरा है जबकि बहुमत (64 फीसद से अधिक) के लिए यह या तो उतना ही रहा है या खराब हुआ है.
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
शोख सनसनी दिल्ली की
आर्ट क्यूरेटर, परोपकारी और सोशल मीडिया सनसनी शालिनी पासी नेटफ्लिक्स की सीरीज फैबुलस लाइव्ज वर्सज बॉलीवुड वाइव्ज में शिरकत करने के बाद मिली शोहरत का मजा ले रहीं
पाइ पटेल की भारत यात्रा
यान मार्टेल के चर्चित उपन्यास लाइफ ऑफ पाइ पर फिल्म भी बनी. और अब यह पुरस्कार विजेता नाटक
कला कनॉट प्लेस के इर्द-गिर्द की
धूमीमल गैलरी में चल रही प्रदर्शनी ज्वॉइनिंग द डॉट्स दिल्ली के सांस्कृतिक दिल कनॉट प्लेस के चिरस्थायी आकर्षण को एक तरह की आदरांजलि
हिंदुस्तानी सिनेमा की एक नई रौशनी
फिल्मकार पायल कपाडिया इन दिनों एक अलग ही रंगत में हैं. वजह है उनकी फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट और उन्हें मिल रही विश्व प्रसिद्धि. उनका सफर एक बड़े सिनेमाई मुकाम पर जा पहुंचा है. अब यहां से इस जुनूनी आर्टिस्ट का करियर एक नई उड़ान लेने को तैयार
रतन टाटा जिन्हें आप नहीं जानते
पिछले महीने 86 वर्ष की उम्र में दिवंगत हुए रतन टाटा. भारत की सबसे पुरानी विशाल कंपनी के चेहरे रतन को हम में से ज्यादातर लोगों ने जब भी याद किया, वे एक सुविख्यात सार्वजनिक शख्सियत और दूसरी ओर एक रहस्यमय पहेली के रूप में नजर आए.
विदेशी निवेश का बढ़ता क्लेश
अर्थव्यवस्था मजबूत नजर आ रही है, मगर विदेशी निवेशक भारत पर अपना बड़ा और दीर्घकालिक दांव लगाने से परहेज कर रहे हैं
अब शासन का माझी मंत्र
मोहन चरण माझी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार राज्य में 'जनता प्रथम' के सिद्धांत वाली शासन प्रणाली स्थापित कर रही. उसने नवीन पटनायक के दौर वाले कथित नौकरशाही दबदबे को समाप्त किया. आसान पहुंच, ओडिया अस्मिता और केंद्रीय मदद के बूते बड़े पैमाने पर शुरू विकास के काम इसमें उसके औजार बन रहे
होशियार! गठरी में लगे महा डिजिटल ढंग
अमूमन दूसरे देशों के ठिकानों से साइबर अपराधी नेटवर्क अब टेक्नोलॉजी और फंसाने के मनोवैज्ञानिक तरीकों से जाल बिछाकर और फर्जी पुलिस और प्रवर्तन अफसरों का वेश धरकर सीधे सरल लोगों की जीवन भर की जमा-पूंजी उड़ा ले जा रहे
कुछ न कर पाने की कसक
कंग्रेस ने 16 दिसंबर, 2023 को जितेंद्र 'जीतू' पटवारी को मध्य प्रदेश का अपना नया अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था.
पुलिस तक पर्याप्त नहीं
गुजरात के तटीय इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी और शहरी इलाकों में लगातार बढ़ती प्रवासी आबादी की वजह से राज्य पुलिस पर दबाव खासा बढ़ गया है. ऐसे में उसे अधिक क्षमता की दरकार है. मगर बल में खासकर सीनियर अफसरों की भारी कमी है. इसका असर उसके मनोबल पर पड़ रहा है.