अलगाववादी भी आजमा रहे किस्मत
India Today Hindi|September 18, 2024
कभी आतंकवाद का गढ़ रहे दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में बड़ा बदलाव नजर आ रहा है. विधानसभा चुनाव के मौसम में उत्साह का माहौल है. ओधुरा गांव में सुबह की खिली धूप के बीच एक छोटे-से गश्ती दस्ते ने मुख्य सड़क पर उत्सुकता के साथ जुटी भीड़ की सुरक्षा पर पैनी नजर बना रखी है. उन्हें राजनीतिशास्त्र में एमफिल कर चुके 42 वर्षीय सयार अहमद रेशी का इंतजार है, जो कुलगाम से चुनाव मैदान में उतरे प्रतिबंधित जमात-एइस्लामी (जेईआइ) के उम्मीदवार हैं. अतीत में बहिष्कार का चलन था, मगर इस बार जमात और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नेताओं समेत करीब दर्जनभर 'अलगाववादी' चुनाव मैदान में हैं. उनमें एक रेशी भी हैं.
मोअज्जम मोहम्मद
अलगाववादी भी आजमा रहे किस्मत

'नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर' और 'इंकलाब जिंदाबाद' के आम नारों के बीच रेशी ने अपनी पहली चुनावी तकरीर शुरू की, पर उनकी बयानबाजी भी इस बार अलग थी. रेशी ने बार-बार भारतीय संविधान और उसमें निहित मौलिक अधिकारों का जिक्र किया और कहा, "हम भारत के नागरिक हैं और हमें देश के अन्य नागरिकों के समान ही अधिकार हासिल हैं. बदलाव शुरू हो गया है. मैं बेजुबानों की आवाज बनूंगा, हम साबित कर देंगे कि भारत और लोकतंत्र के प्रति हमसे ज्यादा वफादार कोई और नहीं है." वैसे कहरोटे गांव स्थित रेशी का घर उन ठिकानों में से एक था, जहां फरवरी में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी फंडिंग मामले में छापे मारे थे.

अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के आह्वान के बीच 1996 से कुलगाम सीट का प्रतिनिधित्व भाकपा नेता एम. वाइ. तारिगामी करते रहे हैं. रेशी ने यह भी कहा, "हमने (जमात) कभी चुनाव बहिष्कार नहीं किया, मगर हम (1987 में हुई ) धांधली का विरोध करते थे. मुझे निर्दलीय चुनाव लड़ने पर बाध्य होना पड़ा. अगर वे (केंद्र) जमात पर प्रतिबंध हटा देते तो हमने अपने खुद के चुनाव चिह्न पर लड़ने की योजना बना रखी थी."

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