चुनाव परिणाम आने के अगले दिन 5 जून 2024 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य और पूर्व सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी और संघ-सरकार में समन्वय बनाने वाले अरुण कुमार मुलाकात के लिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पहुंचे। अमित शाह और राजनाथ सिंह वहां पहले से मौजूद थे। चुनाव परिणाम को लेकर चर्चा के बीच जेपी नड्डा से सीधा सवाल पूछा गया- आपने कहा था कि संघ की प्रासंगिकता अब भाजपा के लिए नहीं है। यह आपने खुद सोचा या किसी के कहने पर कहा? वह कौन है जिसके कहने पर आप ऐसा बोले? नड्डा का जवाब था, ‘‘मैंने वैसा कुछ नहीं कहा जैसा अखबार में छपा।’’ इस पर संघ के पदाधिकारियों का कहना था- लेकिन आपने इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया, अखबार में छपी रिपोर्ट का खंडन नहीं किया।
यह मीटिंग ट्रिगर की तरह काम कर गई, जिसके बाद सरसंघचालक मोहन भागवत से लेकर इन्द्रेश कुमार और संघ के मुखपत्र में लिखे गए लेखों के जरिये संघ का गुस्सा सामने आ गया। इसके बाद दिल्ली की धड़कन बढ़ने लगी और सवाल बड़ा होने लगा कि अल्पमत भाजपा की सहयोगियों के सहारे सरकार तो बन गई, लेकिन क्या मोदी इसे पांच साल चला पाएंगे। मुख्य मुद्दा यह है कि बात यहां तक कैसे पहुंची और आने वाले वक्त में इसका क्या असर होगा। इसके लिए मोदी-भागवत की उस ट्यूनिंग को समझना होगा जो बीते दस बरस में कभी भी टकराव तक नहीं पहुंची, बल्कि सरसंघचालक ने हमेशा प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ ही की।
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