हर जज के पेशेवर जीवन में कयामत के पल आते हैं। तब वह खुद को न्याय की मुंडेर पर खड़ा पाता है। उसे एहसास होता है कि उसका एक अदद फैसला गणतंत्र के चरित्र को बचा सकता है या हमेशा के लिए बदल सकता है। इस संदर्भ में देश के प्रधान न्यायाधीश के पद पर जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के ठीक बाद जस्टिस संजीव खन्ना का आना महज इत्तेफाक कहा सकता है। चंद्रचूड़ के पिता वाइ. वी. चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रह चुके हैं और संजीव खन्ना जाने-माने जज जस्टिस एच. आर. खन्ना के भतीजे हैं। इन चारों के दिए अलहदा और विरोधी फैसले हमें उन क्षणों का पता देते हैं, जो गणतंत्र के लिए परिवर्तनकारी थे।
सर्वोच्च न्यायपालिका के एक जज को संवैधानिक न्याय में दक्ष होने के साथ तेज दिमाग और अखंड नैतिक चरित्र का होना चाहिए। साथ ही उससे उम्मीद की जाती है कि उसका बौद्धिक दायरा इतना व्यापक हो कि वह खतरे की घंटी को साफ-साफ सुन सके। यानी उस क्षण को पहचान सके जब उसे तय करना है कि वह सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के सामने खड़े नए खतरे को रोके या उसे जाने दे। ऐसे में जज का इतिहासबोध मजबूत होना जरूरी है। जिसका इतिहासबोध दुरुस्त नहीं होता, वह न्याय नहीं कर पाता है।
इस मामले में जस्टिस एचआर खन्ना का एक निर्णय उदाहरण है। यह इंदिरा गांधी के लगाए इमरजेंसी के दौरान एडीएम जबलपुर का हेबियस कॉर्पस वाला कुख्यात केस है। जजों के सामने सवाल था कि अनुच्छेद 356 के तहत लगाई गई राष्ट्रीय इमरजेंसी के दौरान क्या नागरिकों को अनुच्छेद 21 के तहत मिली "निजी जीवन और आजादी" की गारंटी खत्म हो जाती है। पांच जजों की खंडपीठ में जस्टिस खन्ना इकलौते असहमत जज थे। वे जानते थे कि इस असहमति की उन्हें कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कहा भी था, "देश के प्रधान न्यायाधीश का पद मुझसे छीना जा सकता है।" ऐसा हुआ भी।
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं