लोकतंत्र की अहमियत 1924-25 के बाद लगातार बढ़ती रही, जब से रूस में स्टालिन का राज आया। यह एक वांछित राज्य पद्धति है, ऐसा दुनिया के सभी लोगों ने स्वीकारा। फिर पूर्व और पश्चिम के दो धड़े बने और इनके बीच शीतयुद्ध चलता रहा। यह सिलसिला 1980 तक जारी रहा।
लोकतांत्रिक राज्य बने और असफल भी हुए। ऐसा कई जगह हुआ। खासकर अफ्रीकी देशों में यह ज्यादा रहा। हमारे यहां संवैधानिक लोकतंत्र बहुत सोच के बाद आया था और हमारा संविधान बना। उसके लिए जो संविधान सभा थी और उसमें जो व्यक्ति थे उन्होंने बहुत ही प्रशंसनीय दृष्टि के साथ इस संविधान की रचना की। संविधान की रचना जब हुई तो स्वाभाविक था कि इसके उपलब्ध मॉडलों में से कुछ अंश लेना पड़ा। जैसे अमेरिकी संविधान, जो लिखित संविधान है। इंग्लैंड में लिखित संविधान तो नहीं था लेकिन कुछ कनवेंशन थे, जैसे हमारा दो सदन का मॉडल इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमन्स से आया। यह प्रथा पर आधारित था लेकिन बहुत ही विश्वसनीय था, समय के साथ आजमाया हुआ था। इस तरह अलग-अलग देशों के संविधानों से कुछ तत्व हमारे यहां लिए गए। यह जो रूप है संवैधानिक लोकतंत्र का, यह कोई एक देश से निर्मित कल्पना नहीं है। यह पूरी दुनिया में अलग जगह, अलग समय पर पैदा हुई। उसके मूल्य इकट्ठा होते-होते ही यह कल्पना स्थिर हुई। यह प्राकृतिक प्रक्रिया थी।
जाहिर है, ऐसे में हमारा जो संविधान बना वह केवल भारतीय परंपरा- धार्मिक, वैचारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक-को लेकर नहीं बना था लेकिन यह वांछित था। दोनों के बीच में जो गैप है- एक तरफ जिसे लोग भारतीय परंपरा कहते हैं और दूसरी संवैधानिक परंपरा- उस गैप में ही 1920 से 1940 तक हमारे देश में जो विचार प्रणाली निर्मित होती रही उनको जगह मिली। जैसे, हमारे यहां महात्मा गांधी और कांग्रेस ने जो आजादी की लड़ाई की वह एक बहुत बड़ा वैचारिक प्रवाह था। उसके साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी भी पैदा हुई जिसकी सहानुभूति रूस के मॉडल की तरफ थी। मुस्लिम लीग पैदा हुई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पैदा हुआ था। मुस्लिम लीग की परिणति यानी अंतिम आविष्कार पाकिस्तान के रूप में सामने आया। उन्होंने एक इस्लामिक राष्ट्र यानी धार्मिक राष्ट्र की कल्पना की थी। हमने वो नकारी थी। इसलिए हमारा लोकतंत्र धर्म-आधारित राष्ट्र नहीं है यह बहुत स्पष्टता के साथ माना गया और संविधान में ये मूल्य लिखे गए थे।
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं