कश्मीर के चुनावी मैदान में सियासी दलों का झंडा नहीं, टोपी प्रतीक बन चुकी है। जब कोई नेता अपनी टोपी हाथ में लेकर लोगों से वोट मांगने लगे, तब समझा जा सकता है कि मामला इतना आसान नहीं है। कश्मीर में पिछले दिनों ऐसा ही कुछ देखा गया। पूरे चुनावी विमर्श के केंद्र में अब टोपी आ चुकी है। घटना 4 सितंबर की है जब उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल सीट से अपना नामांकन दाखिल किया। उसके बाद उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित करते वक्त उर्दू में कहा, "मैं आपको एक बात बता देना चाहता हूं।" इसके बाद वे कश्मीरी बोलने लगे, जिसमें उनका हाथ थोड़ा तंग है।
वे लड़खड़ाते स्वर में बोले, “मेरी टोपी, मेरी इज्जत।" और ऐसा कहते हुए उन्होंने सिर पर रखी अपनी कश्मीरी टोपी हाथ में ले ली। दोनों हाथों में उसे थामे उन्होंने भीड़ को टोपी दिखाई। उसके बाद भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। कुछ समर्थक आंसू बहाने लगे और उनके लिए अपनी जान देने की कसमें खाने लगे। अब्दुल्ला ठहरे, उन्होंने भीड़ पर निगाह डाली, फिर टोपी को हवा में उठाते हुए बोले, "अब यह आपके हाथ में है। मेरी पगड़ी बचा लीजिए। मेरी इज्जत बचा लीजिए। मुझे एक मौका और दीजिए।"
हाथ जोड़कर उन्होंने लोगों से एक और मौका मांगा, फिर टोपी को अपने सिर के हवाले कर दिया। उसके बाद वे बोले कि उनके पास इस वक्त और कुछ राजनीतिक बात कहने को नहीं है। खुद को संभालते हुए उमर वापस उर्दू पर लौटे, ऊपरवाले को याद किया और बोले कि अगर वे मिलकर काम करें तो जीत उनकी होगी।
जब उमर अब्दुल्ला की हैसियत का कोई नेता वोट मांगने के लिए अपनी पगड़ी उतार दे, तो यह कश्मीर के सियासी इतिहास में एक दुर्लभ क्षण बन जाता है। यह मौजूदा सियासी माहौल के जबरदस्त दबाव का संकेत होता है। गांदरबल बेशक अब्दुल्ला परिवार का गढ़ रहा है जहां से खुद शेख अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और उमर तीनों लड़ चुके हैं। बावजूद इसके उमर यहां से परचा भरते समय बेचैन दिख रहे थे। उनकी पार्टी के एक समर्थक ने उमर की मुद्रा के बारे में बहुत शिद्दत से कहा, “हमारी पार्टी और उसके नेताओं पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस खतरे में है।" नेशनल कॉन्फ्रेंस के बारे में लोगों की आम राय यही है।
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