लोकप्रिय कलाओं में राजनीति को लेकर बहस बहुत पुरानी है। आज भी किसी कला-माध्यम की राजनीति को लेकर चर्चा गाहे-बगाहे उभर ही आती है, हालांकि राजनीति और कला दोनों में लोकरंजकता बढ़ते जाने के साथ यह अंतर अब उतना तीखा नहीं रह गया है। समाज और राजनीति के अक्स के रूप में साहित्य-सिनेमा की अलग या समानांतर धाराओं एक समय में पहचान बनाई थी, फिर वे गुम भी हो गईं। अस्सी-नब्बे के दशक तक बहुतेरे लेखक थे जो सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ फिल्मों पर एक खास राजनीतिक मुहावरे में लिखते थे। फिर बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ी फिल्मों का जमाना आया, तो फिल्म समीक्षा रेटिंग के चक्कर में पड़ गई। विश्व सिनेमा तो फिर भी दूर की कौड़ी है, भारतीय भाषाओं में हो रहे गंभीर सिनेमाई काम के ही नामलेवा नहीं बचे। ऐसे परिदृश्य में एक शख्स, जो लगातार पांच दशक तक केवल अपनी प्रतिबद्धता के सहारे सिनेमा, समाज और राजनीति के अंतर्संबंधों पर बिना थके लिखता रहा और आज भी लिखे जा रहा है, उसके समग्र लेखन का किताब के रूप में छपकर आना ऐसी अभूतपूर्व घटना है जिसे कायदे से दर्ज किया जाना जरूरी है।
विद्यार्थी चटर्जी वह नाम है जिसने सत्यजित राय, एमएस सथ्यु, बासु चटर्जी, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, शंख घोष, पासोलिनी, गोदार, हरेन घोष, एकरमैन, गोविंद निहलाणी, अडूर गोपालकृष्णन, सईद मिर्जा, सुमित्रा भावे, गिरीश कासरवल्ली से लेकर आनंद पटवर्धन और अनामिका हक्सर तथा चिली, स्पेन, बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका व लातिनी अमेरिका की फिल्मों पर समान अधिकार से विपुल लेखन किया है। उनका लेखन केवल फिल्में देखने और लिखने तक सीमित नहीं है। वे तमाम फिल्मकारों और कलाकारों से खूब मिले हैं, उनसे बातें की हैं, दुनिया भर के फिल्म महोत्सवों और भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में निर्णायक भी रहे हैं।
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं