माता-पिता में बसते हैं समस्त तीर्थ
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|Kendra Bharati September 2022
प्रासंगिक
डॉ. सौरभ मालवीय
माता-पिता में बसते हैं समस्त तीर्थ

आज के युग में उन्नति का अर्थ केवल धनोपार्जन से लिया जा रहा है अर्थात जो व्यक्ति जितना अधिक धन अर्जित कर रहा है, वह उतना ही सफल माना जा रहा है। मनुष्य की उन्नति की इस परिभाषा ने पारिवारिक सम्बन्धों से मान-सम्मान ही समाप्त कर दिया है। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं। उच्च शिक्षा दिलाने के लिए यथासम्भव प्रयास करते हैं बच्चे बड़े एवं शिक्षित होकर माता-पिता को छोड़ कर महानगरों अथवा विदेशों में जाकर रहने लगते हैं | ऐसी स्थिति में असहाय वृद्ध माता-पिता अकेले रह जाते हैं। ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो एकल परिवार चाहते हैं। वे अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में डाल देते हैं। ऐसे समाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं कि वृद्धों को उनके ही बच्चों द्वारा मारा पीटा जा रहा है। उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता तथा अस्वस्थ होने पर उनका उपचार नहीं भी करवाया जाता। ऐसे में उनका जीवन नारकीय बन जाता है।

देश में वृद्ध लोगों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वृद्ध जनसंख्या वर्ष २०५० तक वर्तमान में लगभग २० प्रतिशत होने का अनुमान है। वर्तमान में यह दर ८ प्रतिशत है। वर्ष २०५० तक वृद्धों की संख्या में ३२६ प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि इनमें ८० वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में ७०० प्रतिशत होने का अनुमान है। गैर सरकारी संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार लहक डाउन की समयावधि में ७३ प्रतिशत वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार किया गया, जबकि ३५ वृद्धों को घरेलू हिंसा पड़ा अ का सामना करना उनके साथ उनके ही परिवार के सदस्यों ने मारपीट की।

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