वीर बालक केशव
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|December 2022
पुण्यभूमि भारत पर असंख्य जन्मजात राष्ट्रभक्तों का जन्म हुआ जिन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम, मातृभक्ति, राष्ट्रीयता तथा बुद्धि चातुर्य से राष्ट्रविरोधियों को न मात्र अचम्भित ही किया वरन उनके अत्याचारों का प्रतिकार कर समाज में व्याप्त उनके भय को समाप्त कर सुनहरे भविष्य की छवि भी प्रस्तुत की। ऐसे ही एक वीर बालक थे केशव।
सिद्धार्थ शंकर गौतम
वीर बालक केशव

१ अप्रैल, १८८६ ई. (चौत्र शुक्ल प्रतिपदा वि. सं. २०४६ ) को नागपुर (महाराष्ट्र) के वेदपाठी परिवार में जन्मे जन्मजात राष्ट्रभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्हें कालान्तर में विश्व ने महान क्रान्तिकारी विचारक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के रूप में जाना और स्वीकारा। बालक केशव के पिता राष्ट्रभक्ति की मिसाल थे और उनकी माताजी संस्कारों की जननी। दोनों के आचार-विचार का केशव के बालमन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था। घर में यदि स्वतंत्रता के तराने छिड़ते हों, अंग्रेजी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने का प्रयास होता हो, धार्मिकता की पराकाष्ठा हो तो उस घर में देशभक्ति की धारा का बहना स्वाभाविक ही है। बाल केशव इसी वातावरण में बड़े हो रहे थे तो उनके भीतर भी अंग्रेजी परतंत्रता को उखाड़ फेंकने की इच्छाशक्ति थी। परतंत्रता उनके लिए मृत्यु सदृश्य थी। बाल केशव को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो देशभक्ति एवं समाज के प्रति संवेदना ईश्वरीय देन थी। 

वीर केशव में अंग्रेजों की परतंत्रता के प्रति कितना क्षोभ था, इसका प्रणाम तो उन्होंने ८ वर्ष की आयु में ही दे दिया था जब १८६७ में रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के हीरक महोत्सव के निमित्त विद्यालय में बांटी गई मिठाई को न खाकर उन्होंने उसे कूड़े में फेंक दिया था। सोचिए, आयु के आठवें वर्ष में जहाँ बच्चे मिठाई देखकर ललचा जाते हैं, केशव ने वह मिठाई मात्र इसीलिए फेंक दी क्योंकि वह उस देश की रानी के उत्सव में दी जा रही थी जिसने भारत को परतंत्रता में जकड़ रखा था, जो भारतीयों पर अत्याचार के नित नए अध्याय लिख रही थी। कुल मिलाकर इस छोटी आयु में भी उन्हें परतंत्रता की मिठाई खाना लज्जाजनक लगता था। 

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