सोमनाथ का स्थापत्य इसका वर्णन करन 'सोम' अर्थात 'चन्द्रमा को फिर से पृथ्वी पर लाने जैसा है। क्योंकि सोमनाथ केवल इसी युग का स्थापत्य नहीं है। इसका वर्णन करने के लिए इसे दो भागों में विभाजित करना होगा। १) प्राचीन वास्तुकला और २) पुरातन वास्तुकला। अनादि काल से प्रतिष्ठित और यारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख, यह वास्तुकला अरब सागर की गोद में खेलती और इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यह भी कहा जा सकता है कि सिन्धु सागर (अरब सागर) ने कई बार इस वास्तुकला के निर्माण, विध्वंस और पुनर्निर्माण को देखा है, उसका साक्षी है। सोमनाथ की प्राचीन वास्तुकला का वर्णन करने से पहले में श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को नमन करता हूँ। सोमनाथ की प्राचीन वास्तुकला का वर्णन, जैसा कि श्री क. मा. मुंशी ने अपने उपन्यास 'जय सोमनाथ' में बखूबी किया है, सोमनाथ का देवालय एक बहुत ही सुन्दर और अद्भुत मन्दिर था।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस मन्दिर का निर्माण सतयुग में राजा सोम ने स्वर्ण से करवाया था। उसके बाद त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की बहुत घनिष्ठ पूजा और तपस्या की, और अपने नौ सिर कमलपुष्प के रूप में भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर दिए। जब शिवभक्त रावण शिवजी को अर्पित करने के लिए अपना दसवां सिर काटने गया, तो मोलेनाथ प्रकट हुए और प्रसन्न होकर रावण के सिर के बाकी हिस्सों को फिर से जीवित कर दिया, तब रावण ने यह मन्दिर चांदी का बनवाया। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में फाष्ट से इस मन्दिर का निर्माण किया था। इस मन्दिर की वास्तुकला बहुत सुन्दर थी। हजारों वर्ष पहले शिव का यह मन्दिर बहुत भव्य था, इसमें ५६ रतम्भ थे और प्रत्येक स्तम्भ सोने चांदी और हीरे के आभूषणों से जड़ा हुआ था। इसके अलावा, गर्भगृह में हीरे से जड़ी सोने की मूर्तियाँ थी। यह गर्भगृह इतना विशाल था कि लगभग १००० पुजारी एक साथ भगवान की पूजा कर सकते थे।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष