इस गौरवशाली मन्दिर का इतिहास ११वीं से १८वीं शताब्दी के दौरान इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा की गई लूट और आक्रमण पर धर्म की विजय का साक्षी और प्रमाण है। इन आक्रमणों के पश्चात १७ से अधिक बार पुनर्जीवित, भव्य मन्दिर के के नवीनतम और अन्तिम वर्तमान परिसर का निर्माण तत्कालीन गृह मंत्री और भारत के लौह-पुरुष श्री सरदार वल्लभभाई पटेल के दर्शन और सक्षम मार्गदर्शन में किया गया था। सन १६५१ में सोमनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण करने के लिए उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि इसे उसके मूल गौरव को प्राप्त करवाने के लिए, के क्योंकि ये मन्दिर की दुर्दशा से अत्यन्त परेशान हुए थे। ११ पई, १९५१ को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मन्दिर के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए भावात्मक भाषण दिया। उन्होंने कहा, "हमारी सभ्यता के भौतिक प्रतीकों को नष्ट किया जा सकता है, लेकिन कोई भी शस्त्र, सेना या राजा उस बंधन को नष्ट नहीं कर सकता है जिसे लोगों ने अपनी संस्कृति और श्रद्धा के साथ किया था। जब तक वह बंधन रहेगा, सभ्यता जीवित रहेगी।" उन्होंने कहा कि यह सभ्यतागत नवीनीकरण के लिए रचनात्मक आग्रह था, जो सदियों से लोगों के दिलों में पला-बढ़ा था, जिसने एक बार फिर सोमनाथ महादेव की प्राण प्रतिष्ठा का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि सोमनाथ प्राचीन भारत की आर्थिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है।
बाण स्तम्भ : प्राचीन काल में हमारे ज्ञान की महानता का प्रतीक
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष