माँ-बाप की इकलौती कन्या थी सरस्वती। उसकी माता का नाम श्रीकीर्ति और पिता का नाम मतिमान था। घर में श्रीगोपालजी का मंदिर था। बूढ़े श्रुतदेव पुजारी ठाकुरजी की पूजा करते थे। सरस्वती देखते-देखते पूजा सीख गयी। माता-पिता पुजारी के साथ अपनी कन्या को ठाकुरजी की लगी देख बड़े खुश होते थे। वे श्रुतदेव पूजा कोई साधारण पुजारी नहीं थे, उनको संतान नहीं थी तो ठाकुरजी को ही उन्होंने अपना पुत्र मान रखा था।
भगवान ही एक ऐसे हैं जो पुत्र होने को तैयार, माता-पिता होने को तैयार, बंधु-सखा होने को भी तैयार!
सरस्वती ने पूछा: "ये कौन हैं?"
पुजारी बोले: "ये गोपाल हैं गोपाल!"
"आपके क्या लगते हैं ?"
"मेरे बेटे लगते हैं।"
"आप मेरे को बेटी बोलते हो और ये आपके बेटे हैं तो हम भाई-बहन हो गये?"
"हाँ, वह तेरा भैया है।"
सरस्वती के शुद्ध हृदय में पक्का हो गया कि 'मंदिर के बाँके बिहारी मेरे भाई लगते हैं।'
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।