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हकीम अब्दुल हमीद : हमदर्द उद्यम के दूरदर्शी संस्थापक
हमारे देश में स्वास्थ्य' और 'आरोग्य' पर पुराने जमाने से ही जोर दिया गया है। हमारे ऋषियों द्वारा भी कहा गया है कि, 'आरोग्यम् धनसंपदा' यानी आरोग्य ही सबसे बड़ी संपत्ति है। यानि आरोग्य को इंसान का परम भाग्य माना गया है। आज भी आप अपने घर परिवार में कहीं न कहीं सुन ही लेते होंगे कि, 'पहला सुख निरोगी काया', यानि आपकी सेहत ही पहला सुख है।
ओडिशा और हॉकी
पांच अगस्त को जब भारत ने टोक्यो ओलंपिक खेलों के पुरूष हॉकी में 41 वर्षों बाद पदक हासिल किया तो उसमें खिलाड़ियों के पसीने व परिश्रम की महक के साथ ओडिशा के योगदान का एक अंश भी शामिल था।
खेल नीति से दिखने लगी मैदान में चमक
ओलंपिक के सवा सौ साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने सात पदक जीते हैं। एक अरब 40 करोड़ की जनसंख्या और दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए यह उपलब्धि कुछ खास नहीं है। लेकिन अतीत की ओर झांके तो यह उपलब्धि भी कम नहीं है। इसके पहले भारत ने लंदन ओलंपिक में छह पदक जीते थे।
खेलों में भी कॉरपोरेट कल्चर की आवश्यकता
टोक्यो ओलंपिक में पहली बार कुल सात पदक लाकर भारतीय खिलाड़ियों ने देश में यकायक एक नई खेल संस्कृति के पुष्पित और पल्लवित होने के शुभ संकेत दिए हैं। इस अति अभिनन्दनीय अभियान की खास बात यह रही कि कुछ मामलों में तो हमारे देश से प्रत्येक स्तर पर शक्तिशाली रूस, ब्रिटेन, और जर्मनी भी हम से पिछड़ गए। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।
डिग्री के साथ-साथ स्किल का होना भी जरूरी
भारत में इस समय 90 प्रतिशत नौकरियां ऐसी हैं जिनके लिए किसी न किसी प्रकार के विशेष स्किल (कौशल) की जरूरत पड़ती है। परिणाम स्वरूप 20 प्रतिशत डिग्री या डिप्लोमा धारक लोगों को नौकरियां मिल ही नहीं पातीं। भारत में ज्यादातर लोग स्किल डेवलपमेंट में रुचि नहीं रखते क्योंकि उन्हें लगता है कि यह तोश्रम से जुड़ा हुआ कोई मामला है।
बदलते भारत की तस्वीर को बयां करता टोक्यो ओलंपिक
बदलते भारत की तस्वीर कों बयां करता टोक्यो ओलंपिक 'पढोगे लिखोगे, बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे, होगे खराब' अक्सर घर में बड़े बुजुर्गों से इस वाक्य को आपने कई बार सुना होगा, क्योंकि पुराने समय में एक धारणा थी कि सिर्फ पढ़ाई करने से बच्चे का भविष्य सुधरता है। इसी कारण माता-पिता अपने बच्चों को खेल कूद से दूर रखते थे। लेकिन, अब जमाना बदल चुका है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीतिः बौद्धिक स्वराज की उपलब्धि का स्वर्णिम अवसर
किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसके योग्य और सक्षम नागरिक ही होते हैं। चरित्र, ज्ञान और कौशल युक्त नागरिक ही योग्य और सक्षम कहे जाते हैं जो किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत अथवा सामूहिक चुनौती को अवसर में बदल डालते हैं।
समय है टॉप्स पे जाने का
हर चार साल बाद जब ओलंपिक का मौसम आता है तो ये सवाल अपने आप खड़ा हो जाता है कि हममें वह काबिलियत क्यों नहीं।
स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- संगठित समाज का साकार होता सपना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम आज देश ही नहीं, विश्व में किसी भी सामाजिक व्यक्ति के लिए अनसुना नाम नहीं है। सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता रखने वाला कोई भी व्यक्ति संघ के विचारों से सहमत हो या असहमत, परंतु वह उसकी उपेक्षा नहीं कर सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे विश्व में एक विशाल तथा शक्तिशाली हिंदू संगठन के रूप में उभरा है। स्वाभाविक ही है कि देश की स्वाधीनता की इस 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश में हुए सामाजिक पुनर्जागरण में उसके योगदान को स्मरण करने का यह सर्वोपयुक्त समय है।
बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर महामारी का असर
कोरोना महामारी के कारण बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। ज्यादातर राज्यों में जहां सवा साल से स्कूल बंद पड़े हैं, वहीं अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के दबाव के कारण बच्चों का इलाज प्रभावित हुआ है, उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधाएं सुलभ नहीं हो पायी है।
दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा का गहराता संकट
हाल में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें भोजन के सेवन और कुपोषण पर कोविड-19 महामारी से प्रेरित आय में हानि के प्रभाव का अध्ययन किया है।
देर से ही सही पर एक आवश्यक और सही शुरुआत
उत्तर प्रदेश के राज्य विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नीति का मसौदा जारी होते ही उसका स्वागत होना चाहिए था। अब तक राजनीति में उन्हें प्रोत्साहन है जो जनसंख्या का बोझ बढ़ाकर देश के संसादनों पर दबाव बढ़ा रहे हैं। यह प्रवृत्ति वोटबैंक की राजनीति को बहुत रास आती है।
जनसंख्या विस्फोट पर रार
सब जानते हैं कि देश के तेज विकास की रफ्तार में जनसंख्या वृद्धि की तेज दर सबसे बड़ी बाधा है। निजी बातचीत में हर वह शरस इसे स्वीकार करता है, जो पढ़ालिखा या समझदार है। लेकिन जैसे ही राजनीति का सवाल आता है, लोग राष्ट्रहित भूल कर राजनीतिक नफानुकसान के हिसाब से जनसंख्या नियंत्रण के विचार पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने लगते हैं।
पेगासस: तथ्य नहीं बस भ्रम का धुंआ ही धुंआ
सत्य के नाम पर असत्य का भ्रमजाल खड़ा कर देना आजकल एक चलन हो गया है।इसे लेकर जयशंकर प्रसाद ने 'कामायनी' में बड़ी सुन्दर पंक्तियां लिखी हैं :
आत्महत्या की कगार पर कांग्रेस
पंजाब विधानसभा चुनाव अगले साल है पर कांग्रेस पार्टी ने पंजाब के सबसे बड़े कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के घोर विरोधी कांग्रेसी नेता प्रदेश के पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर आत्मघाती कदम उठा लिया। सच ये है कि पार्टी की अन्तरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी की चिंता नहीं, उन्हें और राहुल गांधी को अपने मक्खनबाजों की फिक्र ज्यादा रहती है।
जब आपकी हॉबी और पैशन ही बन जाए आपका प्रोफेशन
गरिमा अपने कॉलेज के दिनों से अच्छा खाना खाने और बनाने की शौकीन थी। लेटेस्ट रेसिपी के अनुसार नए डिश तैयार करना और उसके जायके में एक नयापन लाना उसके शौक में शामिल था।
प्रो.श्याम सुंदर ज्याणी पर्यावरण संरक्षण का योद्धा
श्याम सुन्दर ज्याणी की कहानी आज पूरे विश्वभर में चर्चा का विषय बन गयी है। उनके द्वारा काफी बड़ी संख्या में लगाए गये पौधे अब पेड़ का रूप लेकर उनकी संघर्षशीलता और सफलता की कहानी को बयां कर रहे हैं।
जनसमर्थन से हो जनसंख्या नियंत्रण
आज भारत जनसंख्या के हिसाब से विश्व में दूसरे स्थान पर आता है और यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2027 तक भारत विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनकर इस सूची में पहले स्थान पर आ जाएगा। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जनसंख्या के विषय में पहले स्थान पर आने वाले भारत के पास इतने संसाधन और इतनी जगह है जिससे यह भारतभूमि अपने सपूतों को एक सम्मान एवं सुविधाजनक जीवन दे सके? तो आइए इसे कुछ आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं। भारत के पास विश्व की कुल भूमि क्षेत्र का मात्र 2.4 प्रतिशत है जबकि भारत की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 16.7 प्रतिशत है।
ऐश्वर्या की दूसरी पारी !
हिन्दी सिनेमा जगत की खूबसूरत अदाकारा ऐश्वर्या राय बच्चन किसी ना किसी वजह से सुर्खियों में बनी रहती हैं।
अकेलेपन से पैदा होती भयंकर समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर के युवाओं की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन ही है। यूं तो अकेलापन कहने को केवल एक शब्द है, लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, किंतु इधर हाल की स्थितियों को देखते हुए दुनिया भर के देशों और सरकारों ने अब इसे गंभीरता पूर्वक लेना शुरू कर दिया है।
जनसंख्या विस्फोट पर लगे लगाम
सारा विश्व आज बढ़ती हुई जनसंख्या से अत्यधिक चिंतित है। प्रकृति और देश के संसाधन सीमित होते हैं और जनसंख्या वृद्धि से उन पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, उनका अत्यधिक दोहन होता है। पूरे विश्व में भारत जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नंबर पर आता है। पहले नंबर पर चीन है, किंतु कुछ रिपोर्टों से आशंका जताई गई है कि अगले कुछ वर्षों में भारत जनसंख्या की दृष्टि से चीन को भी पछाड़ देगा। यह बहुत ही चिंतनीय विषय है।
कब तक दहेज की आग में जलती रहेंगी बेटियां?
भारत में दहेज हत्या और दहेज के मामलों के खिलाफ सशक्त कानून मौजूद हैं। जरूरत इस बात की है कि दहेज दोषियों को इन कानूनों की गिरफ्त मे लाया जाये। इन कानूनों को जो लोग अमल में लाते हैं पुलिस, प्रशासन व न्यायलय के कर्मचारी व अधिकारी, उन्हें दहेज समस्या और दहेज पीड़ितों के प्रति संवेदनशील बनाया जाये। अगर वे दहेज पीड़ित महिला की फरियाद को आम प्रकरण के रूप मे लेते हैं और काम-टालू तरीके से उस पर कार्यवाही करते हैं या कार्यवाही करते समय अपना हित सामने रखते हैं और पीड़ित महिला व समाज के हित की उपेक्षा करते हैं तो कानून निष्प्रभावी सिद्ध होगे ही।
केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल के निहितार्थ
मंत्रिपरिषद में शामिल लोगों के जातीय और धार्मिक आधार को देखें तो स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। मौजूदा मंत्रिपरिषद में सबसे ज्यादा अन्य पिछड़ी जातियों के 27 मंत्री शामिल किए गए हैं। कभी जिस अन्य पिछड़े वर्ग के मतों पर जनता परिवार और सामाजिक पृष्ठभूमि वाले दल अपना हक मानते थे, उस आधार में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त सेंध लगाई है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में यादव समुदाय को छोड़ दें तो तकरीबन समूचे अन्य पिछड़े वर्ग पर भाजपा का जादू चल रहा है। अगले चुनावों में यह जादू बरकरार रह सके, इसलिए इस वर्ग को तवज्जो देना भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी ही नहीं, जरूरत भी है। इसीलिए इस वर्ग के पांच लोगों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।
गांधीवाला उर्फ ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार
दिलीप साहब को पसंद किए जाने का सबसे बड़ा कारण यह था, कि उनके जीवन, और अदाकारी में अपना देश, इंसानियत, अदब के साथ एक अलग सा मुकम्मल लहजा भरा हुआ था। साहित्य में इसे ग्रेस फुलनेस के अलावा कुछ नहीं कह सकते। वो निकले थे, तो पेशावर से थे, मगर पता नहीं भारत के छोटे-छोटे गांव उनमें कहां से बस गए थे। कहीं कोई फुहड़ता नहीं, कभी वाचालता नहीं। आज अटलजी होते तो आडवाणीजी के साथ दिलीप साहब को यह कहकर बिदा देते, आ इस शजर से लिपटकर रो लें जरा, कि तेरे मेरे रास्ते यहां से जुदा होते हैं।
इस्लामिक देशों में बदलाव की बयार
आश्चर्य है कि जो इस्लाम विज्ञान एवं तकनीक को लगभग अस्पृश्य-सा समझता है, साहित्य, संगीत, कला और अभिव्यक्ति पर तमाम प्रकार के पहरे लगाता है, वह नमाज एवं अजान के लिए वैज्ञानिक उपकरणों एवं अविष्कारों के प्रयोग से परहेज नहीं करता! असली तार्किकता एवं वैज्ञानिकता समय के साथ चलने में है। यह सऊदी अरब की सरकार का बिलकुल उचित एवं समयानुकूल फैसला है कि एक निश्चित समय के बाद एवं निश्चित ध्वनि से ऊंची आवाज में मस्जिदों पर लाउडस्पीकर न बजाया जाय।
कैबिनेट विस्तार: खुले संभावनाओं के द्वार
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अधिकांश मंत्री अपना पदभार ग्रहण करके काम में लग गए। दरअसल, नए मंत्रियों में एक संदेश अच्छे से गया है कि जब धुरंधर किस्म के मंत्री खराब परफॉर्मेंस पर निपटा दिए जाते हैं, तो उनकी क्या बिसात? स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार की अगुवाई करने वाले सभी मंत्रियों को एक ही झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उनके सिवाए दूसरे दर्जन भर मंत्रियों को भी उनके औसत परफॉमेंस पर छुट्टी दे दी।
अश्वगंधा की खेती की ओर बढ़ा किसानों का रुझान
अश्वगंधा की खेती के लिए जरूरी है कि वर्षा होने से पहले खेत की दो-तीन बार जुताई कर लें। बुआई के समय मिट्टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो रही हो तथा बीजों में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल को छिटकवां विधि से भी बोया जा सकता है।
प्राणवायु ही नहीं जीवन के आधार हैं वृक्ष
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'परि'+'आवरण'। 'परि' का अर्थ हैचारों ओर और 'आवरण' का अर्थ है-घेरा। वह घेरा जो हमारे चारों ओर व्याप्त है और जिसमें हम जन्मते, बढ़ते व जीवनयापन करते हैं, पर्यावरण कहलाता है। आज प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जिस तरह से और जिस स्तर पर किया जा रहा है, उससे पर्यावरण को निरंतर खतरा बढ़ता जा रहा है।
जम्मू में ड्रोन हमले और कश्मीर पर राजनीतिक पहल
येमात्र एक संयोग नहीं है कि जम्मूकश्मीर में केंद्र की राजनीतिक पहल के चार दिन के भीतर ही जम्मू के वायुसेना अड्डे पर ड्रोन के हमले हुए हैं। इन आतंकी कार्रवाई में कोई अधिक नुकसान नहीं होने का ये मतलब कतई नहीं है कि ये हमले खतरनाक नहीं हैं। सीधे तौर पर इन दोनों घटनाओं में कोई संबंध न होते हुए भी इनमें गहरा तारतम्य दिखाई देता है। इस घटनाक्रम के इस बिंदु की गहरी पड़ताल बहुत जरूरी है।
बदलाव की पहरी पर धरती का स्वर्ग
कश्मीर की सोच में आए इस बदलाव का ही नतीजा है कि गुपकार गठबंधन के आठों दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर 24 जून को हुई बैठक में ना सिर्फ शामिल हुए, बल्कि उन्होंने आजादी के बाद से ही जारी पाकिस्तान के राग को कम से कम बैठक के दौरान नहीं अलापा। हालांकि जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर से दिल्ली को रवाना होने से पहले यह जरूर कहा था कि कश्मीर को लेकर होने वाली बातचीत में पाकिस्तान को भी शामिल किया जाना चाहिए।