
हमारा देश कृषि प्रधान होने के बावजूद अन्य देशों की अपेक्षा प्रति हैक्टेयर औसत उपज काफी कम है। उदाहरण के तौर पर गेंहू की उत्पादकता आयरलैंड व नीदरलैंड जैसे देशों की 93.78 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जबकि भारत की 35.33 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
खेती पर लागत वर्तमान समय में बहुत अधिक बढ़ गई है। खेत की जुताई, निराई-गुड़ाई, खाद, बीज, दवाईयां, कटाई, मजदूरी आदि का खर्च बहुत अधिक बढ़ गया है। आज देश में प्रति व्यक्ति जमीन की जोत 1.1 प्रति हैक्टेयर से भी कम हो गई है। किसान भाईयों जमीन की जोत को तो नहीं बढ़ाया जा सकता लेकिन खेती की आधुनिक तकनीक अपनाकर व फार्म प्रबंध में छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर खेती की लागत को कम और ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है जो निम्नलिखित है-
खेत की मिट्टी व पानी की जांच
किसान भाईयों को सबसे पहले अपने खेत की मिट्टी व पानी की जांच करवानी चाहिए, जिससे कि यह पता चल सके कि खेत की मिट्टी किस फसल के लिए ज्यादा उपयुक्त है तथा खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि तत्वों की कितनी मात्रा उपलब्ध है जिससे फसल में उचित मात्रा के अनुसार इन तत्वों की कमी दूर की जा सके। खेत में लगे ट्यूबवेल के पानी की जांच से किसान भाईयों को यह पता चल जाता है कि पानी कौन-कौन सी फसल हेतु अधिक लाभप्रद है और कौन सी फसल के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। किसान खेत की मिट्टी व पानी की जांच कृषि विज्ञान केंद्र तथा राज्य सरकार के कृषि विभाग की प्रयोगशालाओं में मुफ्त या बहुत कम शुल्क में करवा सकते हैं।
खेत की तैयारी
खेत में दो-तीन गहरी जुताईयां बिजाई से पहले डिस्क हैरो, मिट्टी पलट हल या देसी हल से करनी चाहिए। क्योंकि इससे भूमि की एक फीट नीचे तक की कड़ी पर परत टूट जाती है तथा इस भूमि में मौजूद तमाम कीट व खरपतवारों के बीच नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी में पानी सूखने की क्षमता भी बढ़ जाती है। मिट्टी नरम होने के कारण फसल की जड़ों का विकास भी अधिक होता है। इससे खेत में उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है। खेत में किसी भी तरह का घास-फूस नहीं होना चाहिए, वरना यह फसल के लिए हानिकारक साबित होता है जिससे पैदावार पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।
बीज का चयन
この記事は Modern Kheti - Hindi の 15th March 2025 版に掲載されています。
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बदलते मौसम में सरसों की फसल में कीट प्रबंधन
हाल के वर्षों में, कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के कारण कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है जिसमें फसल की कम पैदावार, पानी की कमी और कीटों और बीमारियों के खतरों में वृद्धि शामिल है।

जीव रसायन विज्ञान-परिचय और कृषि सुधार में योगदान
पौधों के हर पहलु का ज्ञान ही कृषि विकास को जन्म देता है।

वर्ल्ड फूड प्राईज़ विजेता
डॉ. अकिनवूमी अयोदेजी ऐडसीना अफ्रीकन डिवलपमेंट बैक ग्रुप के आठवें प्रधान हैं। डॉ. ऐडसीना एक प्रतिभाशाली डिवलपमेंट इक्नोमिस्ट एवं एग्रीकल्चरल डिवलपमेंट एक्सपर्ट हैं, जिनके पास अंतर्राष्ट्रीय अनुभव हैं।

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“ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों को पहचानकर उनका प्रभावी उपयोग करना समय की आवश्यकता है। व्यक्तिगत खेतों के संसाधनों का दीर्घकालिक लाभ उनकी समग्र आजीविका सुधार और राष्ट्रीय विकास में योगदान करता है। इसके लिए, खेत के सदस्यों को जागरूक करना आवश्यक है, ताकि वे खेत में उपलब्ध संसाधनों के लाभ और उनके प्रभाव को समझ सकें।”

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