वाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व
यह कहानी उस तीन साल के बाघ की है, जिसे पिछले दिनों बिहार के वाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व में सरकारी आदेश पर मार डाला गया. बताया गया कि वह बाघ आदमखोर हो गया था और इंसानों के लिए खतरा बन गया था. उसने 26 दिनों में छह इनसानों की जान ले ली थी और उसे मार डालना ही अब एकमात्र उपाय बच गया था. मगर क्या वह सचमुच आदमखोर था? क्या वन विभाग के पास सचमुच कोई दूसरा रास्ता नहीं था ? अगर बाघ आदमखोर बन गया था, तो उसकी वजहें क्या थीं? इस बाघ को मार दिए जाने के बाद क्या बिहार के जंगलों में बाघ और इनसान के बीच संघर्ष की कहानी खत्म हो जाएगी? इस पड़ताल में इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई है.
पश्चिमी चंपारण जिले का बलुआ गांव. यहां बीते 8 अक्तूबर को एक बाघ को मारा गया था. गांव में इस घटना के 12 दिन बाद भी कोई पुरुष नजर नहीं आ रहा था. गांव में सिर्फ औरतें और छोटे बच्चे थे. यहां के सभी पुरुष फरार हैं. दरअसल, उन पर सरकारी अफसरों पर हमला करने और उनके काम में बाधा डालने के आरोप में मुकदमा दर्ज है. 125 ज्ञात और 1,000 अज्ञात लोगों के खिलाफ यह मुकदमा दर्ज किया गया था.
दरअसल बाघ मारे जाने के बाद भी गांव के लोगों को शक था कि वन विभाग के लोगों ने उसे सिर्फ बेहोश किया है और वे इसे फिर जंगल में छोड़ देंगे. इसके चलते उन्होंने उस ट्रैक्टर को घेर लिया जिसमें बाघ का शव ले जाया जा रहा था. इस दौरान लोगों ने वन विभाग के खिलाफ नारेबाजी की और विभाग के अधिकारियों व पुलिसकर्मियों पर हमला भी बोल दिया. इस हमले में कई लोग जख्मी हो गए.
इसी गांव की बबीता देवी और उनके पांच साल के बेटे पर 8 अक्तूबर को बाघ ने हमला किया था. उस दिन बच्चा गन्ने के खेत में शौच कर रहा तभी बाघ ने हमला कर दिया. बबीता देवी जब उसे बचाने पहुंची तो फिर बाघ ने उन्हें भी दबोच लिया और उन्हें जबड़े से घसीटता हुआ खेतों के भीतर ले गया. इस बीच खबर पूरे गांव में फैल गई. वन विभाग को भी सूचना मिली. खेतों के चारों ओर भारी शोरगुल होने लगा और इस दौरान बाघ दूसरी जगह छिप गया. बाघ अपने शिकार को खा नहीं पाया था. लोग जब खेतों के बीच पहुंचे तो उन्हें बबीता देवी की लाश पड़ी मिली. पास में ही बच्चे की लाश भी पड़ी थी.
この記事は India Today Hindi の November 09, 2022 版に掲載されています。
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