पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान में) के एक साधारण परिवार में पले-बढ़े मनमोहन सिंह का देश का 13वां प्रधानमंत्री बनने का सफर उनकी सामार्थ्य, बुद्धिमत्ता और जनसेवा की अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है. देश की जूझती उत्तर- औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था से उभरती वैश्विक महाशक्ति में तब्दीली में उनका खासा योगदान रहा है. उन्हें कुछ ही लोग इतने करीब से जानते होंगे जितना प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया. अहलूवालिया ने उनके साथ काम किया, जब वे वित्त मंत्री थे और बाद में जब प्रधानमंत्री बने. 2020 में छपी अपनी किताब बैकस्टेज: द स्टोरी बिहाइंड इंडियाज हाइ ग्रोथ इयर्स में अहलूवालिया ने मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व के कुछ अहम पहलुओं को स्पष्टता और प्रामाणिकता के साथ सामने रखा. उनकी इसी किताब के अंश यहां दिए गए हैं, जिसमें उन्होंने नितांत निजी अनुभवों और देश की प्रगति में मनमोहन के अपार योगदान को दोटूक रेखांकित किया है:
मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाए जाने पर
21 जून, 1991 को जब नई सरकार शपथ लेने वाली थी, मैं वाणिज्य सचिव के पद पर था. शपथ ग्रहण समारोह से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय में एक बैठक में बुलाए जाने पर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. वहां मौजूद लोगों में डॉ. मनमोहन सिंह भी थे जो जिनेवा स्थित 'साउथ कमिशन' में तीन साल काम करने के बाद हाल ही देश लौटे थे. उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष और तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था. प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत पी. वी. नरसिंह राव ने हमें इस विषय पर चर्चा के लिए बुलाया था कि अगले दिन देश के नाम अपने पहले संबोधन में उन्हें क्या कहना चाहिए क्योंकि देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था और उन्हें संदेश देना था कि इस संकट से निबटने के लिए सरकार क्या करने वाली है.
この記事は India Today Hindi の January 15, 2025 版に掲載されています。
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