बेंगलूरू की 32 वर्षीया एमबीए छात्रा नव्या अग्रवाल को इंटरनेट पर देखकर अपनाई गई एक डाइट प्रणाली के उलटी पड़ जाने से पढ़ाई छोड़कर साल भर घर बैठना पड़ा. चार महीने तक उन्होंने सिर्फ सब्जियां और अंडे खाए. वे दरअसल ग्लूटेन पूरी तरह से बंद करना चाहती थीं. गलती से नव्या इसे कार्बोहाइड्रेट का ही एक रूप समझ बैठीं और चावल भी खाना बंद कर दिया जो कि कुदरतन ग्लूटेन-फ्री है. नव्या बताती हैं, "एक दिन तो मैं चक्कर खाकर गिर गई. मुझे थकान और भयंकर तनाव हो गया. साल भर तक मैं पढ़ाई नहीं कर पाई." सेहत सुधारने के लिए पूरे एक साल तक एक डॉक्टर ने उनके खानपान पर गहरी नजर रखी. दूसरी ओर दिल्ली के 48 वर्षीय हितेश कुकरेजा अभी तक 20 अलग-अलग तरह के डाइट प्लान आजमा चुके हैं. अभी के प्लान में उन्हें नाश्ते में तीन में से बस एक चीज लेने की इजाजत है: पोहा, उपमा या इडली और साथ में खूब सारी सब्जियां दोपहर के खाने में वे कम नमक और तेल में बनी लौकी, और रात के खाने में बिना नमक का कद्दू का सूप ले सकते हैं. रोज यही मीनू होता है. 2020 में उन्होंने 30 किलो वजन घटाया और 136 किलो से 105 पर आ गए. वे कहते हैं, "मुझे समझ आ गया है कि कोई एक डाइट प्लान मेरे लिए कारगर नहीं होगा. मैं बोर हो जाता हूं, मुझे वैराइटी चाहिए."
この記事は India Today Hindi の February 01, 2023 版に掲載されています。
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ठोकने की यह कैसी नीति
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"