राम और श्याम का दिन अपने खुद के निजी पूल में उछल-कूद के साथ शुरू होता है. उसके गुनगुने पानी से उनके निकलते ही, एक नौकर उन्हें पोछने के लिए मिस्त्री कपास से बना तौलिया लिए खड़ा रहता है. उनके नाखून विशेष आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से घिसे जाते हैं, ताकि कीटों और संक्रमण से बचाया जा सके. उसके बाद वे दिल्ली के सैनिक फार्म में आराम से टहलने जाते हैं. नाश्ते में जस्मीन चावल के साथ उबली हुई सालमन (मछली) या जायकेदार लैंब स्टू (भेड़ का गोश्त) होता है. फिर वे अपनी खुद की बालकनी में लंबी झपकी लेते हैं. बेशक, दिल्ली में जब कड़ाके की ठंड पड़ती है तो वे घर के भीतरमोमी के डुवेट (बत्तख के रोओं से बनी रजाई) में दुबक कर सोते हैं. एक झपकी लेने के बाद वे घंटे भर बेबीसिटर के साथ खेलते-कूदते हैं. उनका दिन डिनर में ब्लूबेरी ओटमील, एस्परागस सूप या नानी की विशेष खिचड़ी का स्वाद उड़ाकर खत्म होता है. लाडले हैं न? जी नहीं. राम और श्याम दो देसी नस्ल के कुत्ते हैं, जिन्हें 33 वर्षीय ध्रुव भसीन और उनका परिवार 2020 में दिल्ली की सड़कों से उठा लाया था.
जाहिर है, कुत्तों की जिंदगी वैसी नहीं रही, जैसी हुआ करती थी. यानी घर की रखवाली करो, मालिकों पर प्यार बरसाओ, या एकाध डॉग शो में अपने करतब दिखाओ. बदले में शायद अपने नाम एक खिताब का तमगा, शायद नाम लिखा एक पट्टा, हाथ से बुना स्वेटर या फिर चबाने को हड्डी जैसा टुकड़ा, बशर्ते घर के टूटे-फटे चप्पल वगैरह न मिल जाएं. घूमना-फिरना किसी पार्क में या फिर वेटरिनरी डॉक्टर के यहां जाने तक ही होता.
अब तक करीब 20 कुत्ते पाल चुकीं बेंगलूरू की 66 वर्षीया शालू के. याद करती हैं, "डेटॉल साबुन की एक टिक्की से लॉन में होजपाइप से ही नहलाया जाता था. हम अपने कुत्तों को सर्दियों में पहाड़ पर भी कोट और टी-शर्ट नहीं पहनाते थे. उन्हें खाने में ब्रेड और दूध ही दिया जाता था, न कि ब्लूबेरी और ग्लूटोन रहित विशेष खाद्य दिया जाता, जो आप आज देखते हैं."
この記事は India Today Hindi の March 22, 2023 版に掲載されています。
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