मध्य प्रदेश में मतदान को करीब हफ्ते भर का समय बाकी है और यहां की जनता कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के बीच हो रही बयानबाजी को चटखारे लेकर मतदान के दिन का इंतजार करती देख रही है। शोले फिल्म के किरदार जय और वीरू, कालिया और सांभा के किस्से और कुरताफाड़ जैसे बयानों के बीच प्रदेश भले ही नेताओं के बड़े-बड़े कटआउट, झंडों और बैनरों से पट गया और माहौल पर भले ही किसी का ध्यान न जा रहा हो, लेकिन इतना तो तय है कि चुनावी रैलियों, भाषणों में जो भी कहा जा रहा है वह हर दिन चर्चा का विषय बन रहा है। बड़े से बड़े नेताओं की सभाओं में कुर्सियां और जमीन पर बिछी दरियां खाली हैं। जो मतदाता सभाओं में आ रहे हैं, उनके शांत चेहरे और उपेक्षा के भाव ने उम्मीदवारों और पार्टियों की नींद उड़ा रखी है।
शायद यह पहला मौका है जब मध्य प्रदेश का 5 करोड़ से ज्यादा मतदाता न केवल शांति से सुन और देख रहा है, बल्कि पूछने पर भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। यहां तक कि राजनीतिक दलों की उम्मीद की सबसे बड़ी किरण महिला (लगभग 2 करोड़ से ज्यादा) और युवा (22 लाख से ज्यादा) वर्ग में भी जोश नहीं दिख रहा है। यह अलग बात है कि दोनों मुख्य दल इन दोनों वर्गों के अलावा भी अन्य वर्ग में संभावनाएं तलाशने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं।
मतदाताओं के इस इस शांत व्यवहार पर जानकारों का कहना है कि ऐसे मतदाता का मन पढ़ना बेहद आसान है, तो बेहद कठिन भी क्योंकि सब कुछ सवाल पर निर्भर करता है। मतलब किस लहजे में और क्या पूछा गया। मतलब यह कि यह वह दौर होता है जब मतदाता नेताओं के भाषण सुन रहा होता है पर जरूरी नहीं कि वह उसकी बातों से आकर्षित होकर मतदान स्थल तक पहुंच ही जाए।
この記事は Outlook Hindi の November 27, 2023 版に掲載されています。
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