वे राज कपूर के बेहद करीबी थे और उन्हें अपना गुरु मानते हैं। उनका कहना है कि वे जो कुछ भी आज हैं, वह राज कपूर की बदौलत हैं। राहुल रवैल ने राज कपूर के साथ अपने अनुभवों को अपनी पुस्तक राज कपूर: द मास्टर ऐट वर्क में संजोया है। यह किताब राज कपूर के निर्देशन, उनके सिनेमा के प्रति नजरिये और उनके व्यक्तित्व को करीब से समझने का मौका देती है। यह पुस्तक राज कपूर के फिल्मकार, अभिनेता और फिल्मों के प्रति जुनूनी एक व्यक्ति की अनोखी कहानी भी कहती है। आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने राहुल रवैल से खास बातचीत की। संपादित अंश:
● भारतीय सिनेमा में राज कपूर के योगदान को कैसे देखते हैं?
भारतीय सिनेमा पर उनका गहरा प्रभाव था। जब मैं भारतीय सिनेमा कह रहा हूं, तो उसमें क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्में भी शामिल हैं। राज कपूर का फिल्मों के बारे में नजरिया और उनकी सोच सबसे अलग थी। सिनेमा को लेकर उनका दृष्टिकोण बेहद व्यापक था कोई भी विषय हो, वे उसे इतनी बारीकी से पर्दे पर उतारते थे कि हर दर्शक खुद को उससे जोड़ पाता था। आज भी उनका प्रभाव भारतीय सिनेमा पर कायम है।
● समकालीनों में वे कितने और कैसे अलग थे?
वह दौर स्वर्णिम था। फिल्म इंडस्ट्री के लिए ऐसा समय न पहले आया न शायद आएगा। उस दौर में राज कपूर के साथ-साथ गुरु दत्त और महबूब साहब का भी सिनेमा पर बड़ा प्रभाव रहा। सभी की अपनी अलग पहचान थी और उनकी तुलना करना संभव नहीं है। फिर भी, राज कपूर का दृष्टिकोण और सिनेमा को देखने का तरीका उन्हें सबसे अलग बनाता था। इसी वजह से वे आज भी प्रासंगिक हैं।
● समकालीनों के साथ उनका रिश्ता कैसा था?
सभी के बीच दोस्ताना संबंध था ये लोग अक्सर साथ बैठते और फिल्मों पर चर्चा करते थे। हंसी-मजाक आम बात थी। आज के समय में यह बदल गया है। अब स्क्रिप्ट के बजाय बजट को प्राथमिकता दी जाती है। किसी को इस बात की चिंता नहीं होती कि फिल्म कैसी बनेगी, बल्कि यह चिंता रहती है कि सप्ताहांत में वह कितनी कमाई करेगी।
この記事は Outlook Hindi の January 06, 2025 版に掲載されています。
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लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
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