करीब हफ्ते भर क्रिकेट विश्व कप के चलते बेरंग रहा राजस्थान विधानसभा चुनाव आखिरी के चार दिन भी परवान नहीं चढ़ सका, जबकि दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतार दिया। एक तरफ नरेंद्र मोदी जैसे बड़े नेता अपनी पार्टी के वादे करते और दूसरी पार्टी के वादों का परदाफाश करते नजर आए तो दूसरी तरफ राहुल गांधी ने कांग्रेस के वॉर रूम का दौरा कर जता दिया कि वे इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
ऑप्टिक्स की ऐसी राजनीति से मतदाता के भरोसे को अपने हक में टिक रखने और घोषणापत्र में दी गई कल्याणकारी गारंटियों के सहारे उसे लुभाए रखने की दोहरी कवायद के बरक्स दिवाली के ठीक बाद एक दिलचस्प रिपोर्ट सार्वजनिक होती है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की मौजूदा प्रत्याशियों और निवर्तमान विधायकों पर केंद्रित यह रिपोर्ट दोनों प्रमुख दलों की कल्याणकारी गारंटियों के समक्ष एक विडंबना उपस्थित करती है।
इस बार राजस्थान में चुनाव लड़ रहे कुल 1875 प्रत्याशियों में से करीब 30 फीसदी के ऊपर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं और इनमें से 35 फीसदी करोड़पति हैं। पिछले चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या 2000 से ज्यादा थी लेकिन आपराधिक मुकदमों वाले प्रत्याशी केवल 24 फीसदी थे। इस मामले में पार्टियों के अनुपात को देखें, तो 2018 से कांग्रेस ने दो फीसदी ज्यादा अपराधियों को टिकट दिए हैं लेकिन भाजपा ने पिछली बार के 17 फीसदी से बढ़ाकर अपराधियों को इस बार 31 फीसदी कर दिया है। बसपा और सीपीएम को छोड़ दें, तो निर्दलीय सहित बीटीपी, आप और आरएलपी के आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशी इस बार बढ़े हैं।
この記事は Outlook Hindi の December 11, 2023 版に掲載されています。
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