पुस्तक मेले आते हुए मैं उनके बारे में ही सोच रही थी। कितने दिन बीते, अम्मा से बात नहीं हुई है। उन्होंने कहा था, ‘पुस्तक मेले में आने के बारे में सोचूंगी।’ इधर उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा था। उनसे बात करते हुए लगातार लगता था कि उनके पति डॉ. राम चंद्र खान जी के जाने के बाद वे भरे-पूरे परिवार (जिसमें वृहत्तर साहित्यिक परिवार भी शामिल है) के बीच भी कहीं अकेली हो गई थीं। उनके पति उनके बाल सखा थे, उनके जीवन की हर धूप-छांव के साथी। फिर भी वह मजबूत दिखने की कोशिश करती थीं लेकिन देह और मन से कहीं थकती जा रही थीं।
मैं सोच रही थी कि अम्मा की कोई खबर तक नहीं ली, किताबों का मेला है लेकिन अम्मा इतनी शांत क्यों हैं, तब वे हम सबको हमेशा के लिए छोड़ कर जाने की तैयारी कर रही थीं। मात्र पंद्रह दिनों की बीमारी ने उन्हें हमसे छीन लिया।
この記事は Outlook Hindi の March 04, 2024 版に掲載されています。
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