पिछले कुछ वर्षों से कई मानवाधिकार संगठन दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर गोकरकोंडा नागा (जी.एन.) साईबाबा की रिहाई की मांग कर रहे थे। साईबाबा को 9 मई 2014 को गिरफ्तार किया गया था। वे आदिवासियों के विस्थापन और बेदखली के मुद्दों पर सक्रिय थे। अप्रैल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी, लेकिन 7 मार्च, 2017 को गढ़चिरौली की एक अदालत ने उन्हें राज- सत्ता के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। फैसले के बाद उन्होंने सात साल जेल में बिताए। इससे पहले, उन्होंने अपने मुकदमे के दौरान मई 2014 से अप्रैल 2016 तक दो साल जेल में बिताए थे। बॉम्बे हाइकोर्ट ने 14 अक्टूबर, 2022 को उन्हें रिहा कर दिया था, लेकिन अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर रोक लगा दी। इस बार भी राज्य सरकार ने उनकी रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर अदालत ने याचिका खारिज कर दी। रिहाई के बाद आउटलुक के विक्रम राज ने साईबाबा से बातचीत की। कुछ अंश:
आपको पहली बार गिरफ्तार किया गया तो क्या परिस्थितियां थीं?
2010 और 2013 के बीच दिल्ली और दुनिया भर से हम में से कई लोग एक साथ मूलवासियों, आदिवासियों के अधिकारों पर हमले के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। उस समय कंपनियों के साथ बड़ी खनन परियोजनाओं के लिए करार किए गए थे और वन क्षेत्रों में गांवों को खाली कराया जा रहा था और जलाया जा रहा था। खनन के लिए जमीन साफ करने और जमीन तथा जंगलों को कॉर्पोरेट घरानों के हवाले करने के लिए आदिवासियों पर कई हमले हुए।
この記事は Outlook Hindi の April 15, 2024 版に掲載されています。
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