मनमोहन सिंह
26 सितंबर 1932 - 26 दिसंबर 2024
वे इतिहास के ऐसे मोड़ पर बतौर वित्त मंत्री एक सूत्रधार की तरह आए थे, जिसने पिछली सदी के आखिरी दशक में देश की पटरी बदल दी, आजादी के बाद से जारी कल्याणकारी राज्य व्यवस्था को उदारवाद की नई अवधारणा से बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर मोड़ दिया। उसे उदारीकरण और आर्थिक सुधार कहा गया। लाइसेंस-कोटा-परमिट राज के खात्मे से आधुनिक बाजार की पहुंच देश के व्यापक हिस्से में हुई। मध्यवर्ग का आकार बड़ा हुआ। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर ऊपर उठने लगी, हालांकि उसके दूसरे पहलू भी बढ़ती महंगाई और व्यापक कृषि संकट के रूप में आए। कुछ इसी संकट के गहरा होने से 2004 में जब वे बतौर प्रधानमंत्री लौटे, तो उनकी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार को जन अधिकार आधारित कल्याणकारी उपायों, योजनाओं की ओर लौटना पड़ा। यूपीए सरकार के दौर में जीडीपी 8.5-9 प्रतिशत की दर से बढ़ी और तकरीबन 22 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठने का मौका मिला। तो, मनमोहन सिंह के दो बड़े योगदान इतिहास यकीनन दर्ज करेगा: मध्यवर्ग का विस्तार और जन अधिकार आधारित कल्याणकारी योजनाएं। उनका एक और योगदान शायद अर्थव्यवस्था को राजनीि 'मुक्त करने की कोशिश कहा जा सकता है।
この記事は Outlook Hindi の January 20, 2025 版に掲載されています。
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं