Outlook Hindi - September 02, 2024Add to Favorites

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संविधान 75 साल

त्रासदी का अध्याय साहस के प्रसंग

बाढ़ में बह गई बस्तियां ही बस्तियां, मौत हौसला फिर भी कम कर न सकी, केरल की भीषण तबाही के बीच जीवन की उम्मीद की कहानी

त्रासदी का अध्याय साहस के प्रसंग

8 mins

तीन हफ्ते बनाम सोलह साल

अवामी लीग के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन कैसे तख्तापलट तक पहुंच गया

तीन हफ्ते बनाम सोलह साल

7 mins

हसीना का पतन भारत की चिंताएं

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में अब भारत का कोई हितैषी नहीं बचा, यह सबसे बड़ी दिक्कत, फिलहाल अगले घटनाक्रम का इंतजार है

हसीना का पतन भारत की चिंताएं

5 mins

संविधान गया, तो लोकतंत्र नहीं बचेगा

लोकतंत्र और संविधान का अभिन्न रिश्ता है। हर देश में संविधान के निर्माण और उसे लो अपनाने के कई कारण होते हैं। मगर दो कारण प्रमुख हैं। पहला कारण तो वह है, जिसका परिणाम दुनिया में हिंदुस्तान का अहम योगदान है। हमारी विविधता ज्यादा है और हम पराधीन थे, तो इन दोनों का हल निकालने के लिए एक ऐसे दस्तावेज की दरकार थी जो सबको समेटे, जनतंत्र, प्रजातंत्र की स्थापना करे, हम किसी के अधीन न हों, हम किसी राजा-महाराजा के तहत न रहें।

संविधान गया, तो लोकतंत्र नहीं बचेगा

10+ mins

संविधान का आधार हैं अर्जित मूल्य

पूरी दुनिया में बीसवीं सदी के आरंभ से लगभग 1960 तक अलग-अलग जगह संवैधानिक लोकतंत्र सरकार के रूप में प्रस्थापित होता रहा। अफ्रीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत, एशिया, यूरोप के कुछ देशों में जहां कहीं राजा थे, उनकी जगह संविधान के साथ लोकतंत्र आया।

संविधान का आधार हैं अर्जित मूल्य

10+ mins

संविधान के लिए लोग ही लड़ेंगे

संविधान के दर्शन और मनुष्यता के दार्शनिक संकट से अपनी बात की शुरुआत करना चाहूंगा। उसके बाद भारत के संविधान को लेकर जो चीजें घट रही हैं, मैं उस पर आऊंगा। हम जिस संकट पर यहां बात कर रहे हैं, वह सिर्फ भारत की परिस्थिति नहीं है, पूरी मानव प्रजाति का मामला है। इतिहास में बहुत बार मानवता ऐसे दार्शनिक संकटों से गुजरी है जब पूरे मानवीय अंतस को ही अलग-अलग कारणों से धक्का पहुंचता है।

संविधान के लिए लोग ही लड़ेंगे

10+ mins

"अपनी स्वतंत्रता एक महानायक के चरणों में समर्पित न करें"

मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। एक संविधान चाहे जितना बुरा हो, वह अच्छा साबित हो सकता है यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्छे हों। संविधान की प्रभावशीलता पूरी तरह उसकी प्रकृति पर निर्भर नहीं है। संविधान केवल राज्य के अंगों- जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का प्रावधान कर सकता है। राज्य के इन अंगों का प्रचालन जिन तत्वों पर निर्भर है, वे हैं जनता और उनकी आकांक्षाओं तथा राजनीति को संतुष्ट करने के उपकरण के रूप में उनके द्वारा गठित राजनीतिक दल।

"अपनी स्वतंत्रता एक महानायक के चरणों में समर्पित न करें"

7 mins

संविधान की अराजनीतिक राजनीति

संविधान को 2024 के संसदीय चुनावों ने राजनीति का केंद्र-बिन्दु बना दिया है। यूं तो संविधान और व्यावहारिक राजनीति के बीच हमेशा से ही एक रिश्ता रहा है, लेकिन इस बार संविधान राजनीतिक उपयोगिता की विषय-वस्तु बनने के बजाय स्वयं में एक सशक्त राजनीतिक विचार बन कर उभरा है।

संविधान की अराजनीतिक राजनीति

4 mins

संविधान भारत के स्वधर्म की अभिव्यक्ति है

यह संसद का चुनाव नहीं है, यह संविधान सभा का चुनाव है।\" हाल के चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान जितनी भी जनसभाओं में मुझे बोलने का मौका मिला, मैंने शायद हर बार इस वाक्य का इस्तेमाल किया था। जब भी बोला श्रोताओं में, खास तौर पर खास तरह के श्रोताओं में गहरी सहमति का भाव आता था। सबको एहसास था कि मामला एक सामान्य संसदीय चुनाव जैसा नहीं था, मामला बहुत गहरा था और संविधान सभा का रूपक इस गहराई की तरफ इशारा करता था।

संविधान भारत के स्वधर्म की अभिव्यक्ति है

6 mins

मेडल... बस सौ ग्राम दूर!

विनेश फोगाट की दुर्भाग्यपूर्ण घटना और अपेक्षा से कम पदकों की आमद ने दिल तोड़ा तो हॉकी की चमत्कारी जीत से उत्साह बढ़ा

मेडल... बस सौ ग्राम दूर!

5 mins

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KategoriNews

SpråkHindi

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