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खुल रही हैं अलग-अलग राहें
किताबों की दुनिया इस साल काफी समृद्ध रही , लगभग सभी विधाओं में । अच्छी बात यह रही कि अब बड़े और छोटे प्रकाशकों का भेद मिट रहा है और साहित्येतर विधाओं में , खासकर ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रकाशकों की रुचि बढ़ी है । यह हिंदी की अपनी जनतांत्रिक परंपरा है , जो निरंतर विकसित हो रही है
खुद को बदलो नहीं पहचानो
नए साल पर हम सब कुछ न कुछ संकल्प लेते हैं जो अक्सर टूट जाते हैं । ऐसा इसलिए होता है कि हम खुद को, अपने अवचेतन को नहीं जानते । जब हम अपने भीतर के भय और असुरक्षा को जान लेते हैं तो फिर संकल्प की कोई जरूरत नहीं रह जाती
खतरनाक है अवसाद
यों तो हम सब कभी न कभी उदास होते हैं, लेकिन अगर यह उदासी लगातार बनी रहे, तो यह गंभीर अवसाद का रूप ले लेती है । अवसाद भी कई तरह का होता है । अगर इसकी समय से पहचान और इलाज न हो, तो यह खतरनाक हो सकता है और आदमी जीवन से ही मुंह मोड़ लेता है
कौन ले गया आपकी 'मेमरी'
आज तकनीक के जमाने में हम अपने दिमाग की मेमरी का इस्तेमाल करने की जगह कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी पर निर्भर रहने लगे हैं, जबकि हमारा दिमाग इतना बड़ा है कि उसमें 250 करोड़ मेगाबाइट मेमरी को सहेजा जा सकता है। कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी का खतरा इतना बड़ा है कि यह हमारे दिमाग की स्मृति क्षमता को ही नष्ट करने लगी है
कुछ भी एक बार नहीं
संकल्पों के साथ एक अजीब बात है कि एक झटके में बड़े बड़े संकल्प लेना और उनका पूरा न हो पाना आपको और परेशानी में डाल सकता है । ध्यान रहे कि एक बार में कुछ भी नहीं होता। छोटे-छोटे संकल्प लें और उनमें निरंतरता बनाए रखें । इससे आप अपने भीतर बहुत खुशी महसूस करेंगे
कुछ दूरियां कुछ नजदीकियां
साहित्यिक कृतियों पर जब भी गंभीरता से फिल्में बनी हैं उनका जादुई असर हुआ है । मुश्किल फिल्म निर्माताओं की है कि वे साहित्यिक कृतियों पर फिल्म बनाना नहीं चाहते , क्योंकि यह एक कठिन काम है और उसके लिए खास साहित्यिक दृष्टि चाहिए । फिर भी ऐसी तमाम फिल्में हैं जिन्होंने मूल रचना के साथ बराबर न्याय किया है
कुछ छोड़ना भी सीखो
अपना वजन कम करेंगे । मीठा नहीं खाएंगे । झूट नहीं बोलेंगे । ऐसी बहुत सारी बातें हैं, जो साल के पहले दिन हम अपने आप से बोलते हैं । इनमें से कितनी पूरी होती हैं, यह अलग बात है । हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि अपने मन को काबू में करें न कि मन के काबू में रहें
कुछ खटटी कुछ मीठी
जिंदगी जैसे यादों की बारात ही है। छोटी-छोटी घटनाएं जब जुडती हैं तो जाने कितनी कहानियां जीवंत हो उठती हैं। यादें ही हैं जो मुश्किल दिनों में बीते खूबसूरत लम्हों को ताजा करके ऊर्जा से भर देती हैं। लेखक याद कर रहे हैं गीत-संगीत की दुनिया के अपने पुराने दिन
किसी पल का इंतजार!
लंबे समय तक एक-सा ही काम करते रहने से तन ही नहीं, मन भी थक जाता है । उसे भी आराम की जरूरत होती है । और यह आराम सिर्फ । ' आराम' करने से ही नहीं मिलता, बल्कि कुछ नया करने से भी मिलता भागदौड़भरी जिंदगी में कुछ देर ठहरें । साल का पहला दिन कुछ ठहरकर देखने का दिन होता है
किला
राजकुमार अपने किले की खिड़की से रोज एक लड़की को देखता है और उस पर मुग्ध हो जाता है। लड़की के बारे में वह कुछ नहीं जानता। बतौर राजकुमार वह खुद उसके सामने जा नहीं सकता। अपने सेवक से वह उसके बारे में पता करने को कहता है। सेवक बताता है कि वह उसकी प्रेमिका है। फिर....
काव्य
एक कवि के यहां काम करने वाली नंजम्मा अपने साथ गांव से एक लड़की पुट्टगौरी को लाई, जिसे शहर में किसी से प्रेम हो गया। मार-पीट कर उसे गांव भेजा गया जहां उसकी शादी हो गई। ससुरालवाले उसे परेशान करते तो कवि के समझाने पर वह पति के साथ अलग रहने लगी। प्रसव हुआ तो दिक्कत बढ़ गई फिर...
काल-चिंतन
एक पहाड़ी रात ! अकेला बैठा नीत्शे अपने आप से लड़ रहा था । सहसा उसने आवाज दी - ' लिव डेंजरसली , ' अर्थात खतरे में जियो ।
कहीं ठंड न लग जाए दिल को
वैसे तो सर्दियों का मौसम सेहत के लिए अच्छा माना जाता है, पर दिल के रोगियों के लिए यह खतरे की संभावना बढ़ा देता है। तापमान कम होने से धमनियां सिकुड़ने लगती हैं, जिससे हृदय तक रक्त की पहुंच मुश्किल होने लगती है। स्मॉग भी समस्या बढ़ाने का काम करता है। ऐसे में बढ़ती हुई ठंड में दिल की खास देखभाल की जरूरत होती है
कहीं एक हारमोनियम बजता है
स्मृतियां सिर्फ व्यक्तियों की ही नहीं होतीं उनसे जुड़ी चीजों की भी होती हैं। जैसे लेखक के बचपन में पिता द्वारा बजाया जानेवाला हारमोनियम और उसके राग उनकी स्मृति के साथ ऐसे एकाकार हो गए कि भूलते नहीं
एलोपैथी - ये गुर्दे हैं संभालकर रखिए
गुर्दो की बीमारी आजकल आम समस्या बन चुकी है और इसका बड़ा कारण हमारी जीवनशैली है। शुरुआत में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते। आयुर्वेद में उवित आहार-विहार के साथ इसका सटीक इलाज है
एक-दूसरे का ध्यान रखना ही प्यार
सोनम कपूर आज बॉलीवुड सेलिब्रिटी हैं। आनंद से जब उन्हें प्रेम हुआ तब उसका उन्हें पता भी नहीं चला। वे तो अपनी सहेली से उनकी डेटिंग की योजना बना रही थीं, लेकिन होनी कुछ और ही थी! आनंद, सोनम का इतना खयाल रखने लगे कि उन्हें उन्हीं से प्रेम हो गया
एक सूर्यास्त का ब्योरा
सड़क के अंधेरे आईने में अंतिम ट्राम गायब हो रही थी। ऊपर बिजली के तारों का जालथा, जिसमें से कभी-कभी तिड़कने की आवाज के साथ चिनगारियां निकलती थीं। दूर से वे किसी नीले सितारे जैसी लगती थीं।
एक बार फिर पहले की तरह मिले-जुलें
कुछ करने के लिए की जरूरत होती है और जोश के लिए किसी मौके या बहाने की । ये बहाना कुछ भी हो सकता है । मूल बात यह है कि इस बहाने की सीढ़ियां चढ़कर ही कोई भी इनसान कुछ भी कर सकता है । नया साल बहुतों के लिए ऐसा ही बहाना है
एक तारीख तो बताओ
1जनवरी कोई खास तारीख है? मानो तो है, वरना नहीं। किसी के लिए हर महीने आनेवाली एक तारीख-जैसी ही है। किसी के लिए साल का पहला दिन। नया साल, नई शुरुआत। नए इरादों के साथ कुछ नया करने का जज्बा। कुछ तो है ऐसा, जो इस तारीख को खास बनाता है
एक जिद है नईवाली हिंदी
हिंदी में लिखकर जीवन चलाना कभी एक सपना था , लेकिन अब स्थिति वैसी नहीं है । लेखक भी अब सिर्फ हिंदी की दुनिया से नहीं आ रहे हैं । नई वाली हिंदी ने इस स्थिति को बदला है और इसमें नया सिर्फ इतना है कि यह अपने समय की भाषा में दर्ज कर रही है और पाठक इसे हाथोंहाथ ले भी रहे हैं
एक अफ्रीकी नन की डायरी
एक नन जिसे सिर्फ जीसस से ही प्रेम करने का अधिकार है जो इस दुनिया में नहीं हैं। इस दुनिया में वह उनकी पत्नी बनकर रह रही है और उन्हें इस दुनिया के सौंदर्य के बारे में बताना चाहती है। जीसस स्वर्ग में हैं और इस दुनिया के सौंदर्य से उन्हें कोई मतलब नहीं। एक गहन भावनात्मक यंत्रणा की कहानी
उस शहर की परछाइयां
शहरों की भी अपनी स्मृति होती है और उससे जुड़े लोगों की भी अपनी। कुछ शहर आपको इतने अपने लगने लगते हैं कि आपके जेहन में बस जाते हैं। चाहे आप उन्हें छोड़कर कहीं और ही बस जाएं वे आपकी यादों से नहीं जाते। तुर्की के इस्तांबुल शहर की यह स्मृति भी कुछ ऐसी ही है
उस रोशनी की तलाश में
रोशनी का असली महत्व "कादम्बिनी" के जरिए
उस दिन को बनाएं खास
कोई भी खास दिन और भी खास हो आपके परिवार है, जब आपका पूरा जाता साथ हो । कुछ ऐसा ही होता है, नए साल के पहले दिन । इस दिन परिवार के साथ की गई मौज मस्ती और बिताया समय पूरे साल एनर्जी देता है । बता रही हैं प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री
इंतजार
एक ही लड़की थी । बड़े अरमानों से पाला, पर बड़ी हुई तो अपनी मर्जी की मालिक हो गई । अपने मन से शादी की और कनाडा चली गई । अंतर्मन की पीड़ा सहते गुजरते वक्त के साथ नायिका के पति प्रकाश बीमारी का शिकार हो इस दुनिया से चले गए । ऐसे में नायिका को किरायेदार लड़की मोहिनी के रूप में उम्मीद की एक नई किरण मिली, लेकिन एक दिन वह आया कि.....
इंटरनेट के दौर में याद
ताजा शोध बताते हैं कि आज तकनीकी और इंटरनेट के दौर में हम भीषण स्मृतिलोप का शिकार हो रहे हैं। हमारी एकाग्रता भंग हो रही है और हम बिना तथ्यों को जांचे पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर होते जा रहे हैं जहां सच को झूठ और झूठ को सच बनाने का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है
अमर प्रेम कालजयी कहानियां
प्रेम! प्रेम पर क्या कहा जाए? समझ नहीं आ रहा। यह एक ऐसा भाव है, जिससे सभी प्रेम करते हैं। लेकिन इसे करना जितना मुश्किल है, उससे कम मुश्किल नहीं है, इस पर कुछ कहना और लिखना। खैर, इस पर कुछ कहने से पहले एक वाकया- करीब चौबीस-पच्चीस साल पुरानी घटना है। बीस-इक्कीस साल का एक युवा अपनी कविता प्रकाशित करवाने के लिए एक पत्रिका के ऑफिस पहुंचता है।
अपने-अपने सपने
नया साल अपने साथ बहुत कुछ लेकर आता है । इन्हीं कुछ में से एक होता है-हमारे सपने । इनमें से कुछ पिछले वर्षों के हैं तो कुछ नए साल के। कुछ उम्मीदभरे, तो कुछ इन उम्मीदों को पूरा करने का जज्बा लिए । हर आंख के अपने सपने हैं । अपने रंग हैं ।... और इन्हें पूरा करने का अपना हौसला है
अपने से वादे 20-20 के दौर में
जिंदगी को रिचार्ज करने के लिए हम कई तरीके आजमाते हैं। ये तरीके पढ़ने-लिखने से लेकर खेल-कूद हो सकते हैं। सामाजिक गतिविधियों से लेकर परिवार के साथ ज्यादा समय बिताना या और कुछ भी हो सकते हैं। इन सबको करने के लिए जरूरी होता है अपने आप से वादा करना
अपनी वाचिक परंपरा वाह।
हमारे तमाम महान ग्रंथ श्रुति और स्मृति परंपरा से ही जनमे। आमतौर पर स्मृति बीती हुई चीज़े की होती है लकिन जब स्मृति के साथ प्रज्ञा भी जुड़ जाती है तब भबिस्य ज्ञान होता है।