बदलते मौसम का कृषि पर दुष्प्रभाव

कृषि मंत्रालय ने संसद की प्राक्कलन समिति को बताया कि अगर समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, सरसों जैसी फसलों पर जलवायु परिवर्तन का काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। समिति ने इस समस्या को हल करने के लिए सरकार की कोशिशों को नाकाफी बताया है। ग्लोबल क्लाईमेट रिस्क इंडेक्स के अनुसार, भारत जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों में छठे स्थान पर है, जो कि देश में बाढ़, चक्रवात और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति से स्पष्ट हो जाता है।
जलवायु परिवर्तन मानसून को प्रभावित करता है और भारतीय कृषि मानसून पर ही निर्भर है। दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व दिशाओं से बहने वाली नमीपूरित मौसमी मॉनसून हवाएं सालाना मानसून की बारिश में आती है। ये बारिश भारत की वर्षा पोषित कृषि के लगभग 60% के लिए महत्वपूर्ण हैं और मानसून की हवाओं का समय पर आगमन और पर्याप्तता हमारे कृषि प्रथाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हवाओं की आवृत्ति प्रत्येक मौसम, वर्ष और दशक में भिन्न होती है और इस बदलाव को मानसून परिवर्तनशीलता कहा जाता है।
जलवायु परिवर्तन तात्कालिक परिणाम
1. सन् 2100 तक फसलों की उत्पादकता में 10-40 प्रतिशत की कमी आएगी।
2. रबी की फसलों को ज्यादा नुकसान होगा। प्रत्येक 1 सैं.ग्रे. तापमान बढ़ने पर 4-5 करोड़ टन अनाज उत्पादन में कमी आएगी।
3. पाले के कारण होने वाले नुकसान में कमी आएगी जिससे आलू, मटर और सरसों का कम नुकसान होगा।
4. सूखा और बाढ़ में बढ़ोतरी होने की वजह से फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता की स्थिति होगी।
5. फसलों के बोये जाने का क्षेत्र भी बदलेगा, कुछ नये स्थानों पर उत्पादन किया जाएगा।
6. खाद्य व्यापार में पूरे विश्व में असंतुलन बना रहेगा।
7. पशुओं के लिए पानी, पशुशाला और ऊर्जा संबंधी जरूरतें बढ़ेंगी विशेषकर दुग्ध उत्पादन हेतु।
8. समुद्रों व नदियों के पानी का तापमान बढ़ने के कारण मछलियों व जलीय जंतुओं की प्रजनन क्षमता व उपलब्धता में कमी आएगी।
9. सूक्ष्म जीवाणुओं और कीटों पर प्रभाव पड़ेगा। कीटों की संख्या में वृद्धि होगी तो सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होंगे।
10. वर्षा आधारित क्षेत्रों की फसलों को अधिक नुकसान होगा क्योंकि सिंचाई हेतु पानी की उपलब्धता भी कम होती जाएगी।
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खेती में उचित प्रबंधन से अधिक पैदावार व आय प्राप्त करें किसान
हमारे देश में लगभग 65-70 प्रतिशत लोग खेती-बाड़ी के व्यवसाय में सीधे व गैर सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं।

बदलते मौसम में सरसों की फसल में कीट प्रबंधन
हाल के वर्षों में, कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के कारण कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है जिसमें फसल की कम पैदावार, पानी की कमी और कीटों और बीमारियों के खतरों में वृद्धि शामिल है।

जीव रसायन विज्ञान-परिचय और कृषि सुधार में योगदान
पौधों के हर पहलु का ज्ञान ही कृषि विकास को जन्म देता है।

वर्ल्ड फूड प्राईज़ विजेता
डॉ. अकिनवूमी अयोदेजी ऐडसीना अफ्रीकन डिवलपमेंट बैक ग्रुप के आठवें प्रधान हैं। डॉ. ऐडसीना एक प्रतिभाशाली डिवलपमेंट इक्नोमिस्ट एवं एग्रीकल्चरल डिवलपमेंट एक्सपर्ट हैं, जिनके पास अंतर्राष्ट्रीय अनुभव हैं।

कृषि में बायोगैस का महत्व और पशुधन गोबर का प्रभावी उपयोग
“ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों को पहचानकर उनका प्रभावी उपयोग करना समय की आवश्यकता है। व्यक्तिगत खेतों के संसाधनों का दीर्घकालिक लाभ उनकी समग्र आजीविका सुधार और राष्ट्रीय विकास में योगदान करता है। इसके लिए, खेत के सदस्यों को जागरूक करना आवश्यक है, ताकि वे खेत में उपलब्ध संसाधनों के लाभ और उनके प्रभाव को समझ सकें।”

रबी दलहनों की उपज बढ़ाएं देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएं
दलहन हमारे देश की खाद्य सामग्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन के दौर में टिकाऊ खेती, मृदा की उर्वरा शक्ति को कायम रखने और पोषण सुरक्षा में दलहनी फसलों का अति महत्वपूर्ण योगदान है।

भारत में 8 गुणा बढ़ रहा है मृदा क्षण
भारत में मृदा क्षरण की दर वैश्विक दर से कहीं अधिक है। इसके कई कारक हैं जिनमें कृषि उत्पादन हेतु खादों का अनरवत बढ़ता प्रयोग प्रमुख है।

एमएसपी गारंटी कानून : किसानों के लिए सुरक्षा कवच या आर्थिक विनाश ?
अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और साहूकारों की कंपनियों से वित्त पोषित अर्थशास्त्री और सरकारी पैरोकार एमएसपी गारंटी कानून को आर्थिक तौर पर विनाशकारी और असंभव बताकर देश में जान-बूझ कर भ्रम फैला रहे हैं कि एमएसपी गारंटी कानून लागू करने पर सरकार को 17 लाख करोड़ रुपये वार्षिक से ज्यादा खर्च करने होंगे, क्योंकि तब सरकार एमएसपी वाली 24 फसलों के कुल उत्पादन को खरीदने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हो जाएगी।

बायोपोनिक्स : पर्यावरण-अनुकूल खाद्य उत्पादन की एक उपयोगी तकनीक
जलवायु परिवर्तन, गहन खेती के पर्यावरणीय प्रभाव, जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए, हमारी खाद्य प्रणाली धीरे-धीरे अधिक पर्यावरण-अनुकूल बन रही है।