पश्चिम के एक मूर्धन्य नाटककार की प्रसिद्ध उक्ति है कि नाम में क्या रखा है!
किंतु, हमारे यहां नाम की बड़ी महिमा है। नामकरण एक आवश्यक संस्कार है। जब किसी नवजात का नाम रखा जाता था तो ग्यारहवें अथवा बारहवें दिन उत्सव मनाकर नामकरण किया जाता था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार चारों दशरथ पुत्रों का नामकरण जन्म से बारहवें दिन किया गया था। नाम भविष्य निर्माता माना गया। नाम का मनुष्य के व्यक्तित्व तथा कर्म पर प्रभाव होता है, यह शास्त्रोक्त कथन है। महर्षि पतंजलि का सुझाव है कि जातक का नाम प्रारंभ की तीन पीढ़ियों के नाम का स्मारक हो तथा वह सुप्रतिष्ठित भी हो।
यथा नाम तथा गुण की उक्ति हमारे यहां अतिप्रसिद्ध है लिहाज़ा, पूर्व में नाम भगवान के नाम पर बहुधा रखे जाते थे। श्याम, नारायण, राम, मोहन, शिव, कृष्ण, देवी, देव आदि को किसी भी संज्ञा के साथ जोड़कर अनेकानेक नाम गिने जा सकते हैं। ईश और इंद्र प्रत्यय से सुनाम माला तैयार हो जाती है।
नाम माहात्म्य के अनेक प्रसंग हमारी संस्कृति में हैं। अजामिल कथा में संत-महात्माओं के कहे अनुसार अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा और अंत समय में मृत्यु को आसन्न देख अपने पुत्र नारायण को पुकारने लगा। इन अंतिम क्षणों में भगवनाम से अजामिल का उद्धार हो गया।
भारत में जातक के चिह्न, रंग, रूप, कुंडली, ग्रह दशा, नक्षत्र आदि देखकर नाम रखने का चलन रहा। कृष्ण का नामकरण उनके श्याम वर्ण से हुआ, पिता वसुदेव से वासुदेव कहलाए, गोपालक के रूप में गोपाल बने और गिरिराज गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा पर धारण करने से गिरिराजधरण और गोवर्धनधारी कहाए । महाज्ञानी अष्टावक्र को उनके पिता कहोड़ शाप दिया था कि वे आठ स्थानों से वक्र यानी टेढ़े जन्म लेंगे और इसी से उन्हें नाम मिला अष्टावक्र।
Denne historien er fra August 2024-utgaven av Aha Zindagi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra August 2024-utgaven av Aha Zindagi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
अंतरिक्ष केंद्र सतीश धवन
श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम जिनके नाम पर 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' है, वे सही मायनों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के केंद्र रहे हैं।
हरी-हरी धरती पर हर
वर्षा की विदाई वेला है। नदियों का कलकल निनाद गूंज रहा है, धरती ने हरीतिमा की चादर ओढ़ रखी है, प्रकृति का हर हिस्सा खिला-खिला, मुस्कराता-सा लग रहा है।
गजानन सुख कानन
भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी श्रीगणेश के आगमन की पुण्यमय तिथि है। देव अपना लोक छोड़ मर्त्य मानवों के निवास में उन्हें तारने आ बैठते हैं।
जब मंदिर में उतर आता है चांद
यायावर के सफ़र में तयशुदा गंतव्य तो उसका पसंदीदा होता ही है, राह के औचक पड़ाव भी कोई कम मोहक नहीं होते। बस, दरकार होती है एक खुले दिल और उत्सुक नज़र की। महाराष्ट्र के फलटण से खिद्रापुर के बीच की दूरी यात्रा की परिणति से पहले के छोटे-छोटे आनंद को संजोए हुए है इस बार की यायावरी।
भावनाओं के क़ैदी...
भावनाएं और तर्क हमारे व्यक्तित्व के दो अहम हिस्से हैं और दोनों ही ज़रूरी हैं। लेकिन कभी भावनाएं प्रबल हो जाती हैं तो तार्किक बुद्धि मौन हो जाती है। इसके चलते तनाव बेतहाशा बढ़ जाता है, आवेग में निर्णय ले लिए जाते हैं और फिर अक्सर पछताना ही पड़ता है। यही 'इमोशनली हाईजैक' होना है। जीवन का सुकून इससे उबरने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।
मेरा वो मतलब नहीं था!
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
...जहां चाह वहां हिंदी की राह
भाषा के मामले में असल चीजें हैं प्रवाह और प्रयोग...हिंदी शब्द समझने में सरल होंगे, अर्थ को ध्वनित करेंगे, और उनका नियमित प्रयोग होगा तो किसी भी क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की घुसपैठ के लिए कोई बहाना ही नहीं बचेगा...
हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
पहले हमने दुनिया को विज्ञान का ज्ञान दिया और अब खुद एक विदेशी भाषा में विज्ञान पढ़ रहे हैं। इस बीच आख़िर हुआ क्या? विज्ञान आगे बढ़ गया और हिंदी पीछे रह गई या फिर हमने अपनी भाषा की क्षमता को जाने बग़ैर ही उसे अक्षम मान लिया?
फिल्म नगरिया की भाषा
कितनी अजीब बात है कि हिंदी फिल्म उद्योग की भाषा हिंदी नहीं है। हिंदी फिल्मों में शुद्ध हिंदी का मज़ाक़ बनाया जाता है। सेट पर बातचीत अंग्रेज़ी में होती है, पटकथा अंग्रेज़ी में लिखी जाती है और संवाद रोमन में। हिंदी फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले सितारे हिंदी बोलने में हेठी देखते हैं। हालांकि इस घटाटोप के बीच अब आशा की कुछ किरणें चमकने लगी हैं...
हिंदी किताबों में हिंदी
कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?