आदत में न जाने क्या बात है कि जो इसके चंगुल फंसता है वह इससे बाहर नहीं निकल पाता। वह मन को पकड़ लेती है जोंक की भांति। मनुष्य जैसा बुद्धिमान प्राणी भी कहता है- आदत से लाचार हूं। कैसी है यह लाचारी? कहते हैं, आदतें दूसरा स्वभाव होता है इसलिए उन्हें बदलना मुश्किल होता है। बड़े-बड़े लोग इनके जाल से उबर नहीं पाए। आइए, इस महाठगिनी आदत का अवलोकन करते थोड़ी मन की बनावट देखें तो इसे समझ पाएंगे।
आख़िर आदत बनती कैसे है?
मन एक यंत्र है, ठीक कंप्यूटर जैसा। कंप्यूटर में एक बार डेटा डाल दिया जाए तो वह उसका अभिन्न अंग हो जाता है। मस्तिष्क के जो केंद्र यानी न्यूरो सेंटर्स हैं वे भी बायो कंप्यूटर हैं। कई केंद्र हैं जो मनुष्य के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। आदतों और भावनाओं का नियंत्रण करने का एक केंद्र है जो मस्तिष्क के बीचोंबीच है, उसका नाम है बेसल गैंगलिया। इस केंद्र का काम है भावनाओं को नियोजित करना, स्मृतियों को संजोना और आदतों को सम्हालना। जब हम कहते हैं कि हम आदत के अधीन हैं तो वस्तुतः हम अपने मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के अधीन होते हैं।
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
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