जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
Aha Zindagi|November 2024
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
संत समीर
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया

समय का पहिया कहां थमता है। गुजरते वक़्त के साथ कहीं बस्तियां वीरान हो जाती हैं तो कहीं वीराने बस जाते हैं। पांच सौ साल से बस ज़रासा पहले का वाक़या है। अयोध्या नगरी से कुछ दूर अवध के एक छोटे से हिस्से में व्यापे घनघोर जंगल में एक दिन कुछ हलचल होती है, एक बस्ती के बीज पड़ते हैं; उगना शुरू होती है किसी नन्हे पौधे की तरह और समय के साथ भरे-पूरे वृक्ष में बदल जाती है। सोलहवीं सदी के छठे दशक तक का बियाबान आज अकबरपुर के रूप में आबाद है। अकबरपुर अपने बसने की कहानी अपने नाम से बयान करता है। कहते हैं, सन् 1566 में सम्राट अकबर लाव-लश्कर के साथ यहां से गुजरे। कुछ दिन विश्राम किया तो ख़याल आया कि क्यों न यहां एक बस्ती बसाई जाए। सम्राट ने आज के तहसील तिराहे वाली जिस जगह पर आराम फ़रमाया, वहां नमाज़ के लिए एक मस्ज़िद की आधारशिला रखी। बादशाह के नाम पर बस्ती बनी अकबरपुर और मस्जिद का नाम आमजन ने दिया किले वाली मस्जिद।

अकबरपुर : जैसा नाम वैसा मिज़ाज

अकबरपुर बसा तो इसके इर्दगिर्द चालीस-पचास किलोमीटर के दायरे में बाद के दिनों में मुगलिया निशान गहराते चले गए। पांच सदियों में बहुत कुछ बना बिगड़ा-बसा। मुग़ल काल का असर और उसके पहले के अवध का गौरवशाली ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत इसे एक मिलाजुला सांस्कृतिक परिधान देते हैं। जिस गंगा-जमुनी तहज़ीब की हम बात करते हैं, वह देश में और कहीं कितनी जीवित है, पता नहीं, पर यहां के लोगों के व्यवहार में इसे कुछ हद तक देखा जा सकता है। क़स्बाई आबादी में हर सुबह अजान का स्वर, तो गांवों में हर कहीं हिंदुओं का राम-राम, जै सीताराम सुनाई देता है। दुआ सलाम में मुसलमानों के मुंह से भी अक्सर राम-राम निकल ही आता है ऐसा नहीं है कि सामाजिक समरसता के लिए कोई आंदोलन चला हो, बस सदियों में विकसित हुई आपसदारी का प्रतिफल है।

Denne historien er fra November 2024-utgaven av Aha Zindagi.

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November 2024
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जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
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November 2024
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
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अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।

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चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
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मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।

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November 2024
सदियों के शहर में आठ पहर
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सदियों के शहर में आठ पहर

क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!

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November 2024
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भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....

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November 2024
एक वीगन का खानपान
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एक वीगन का खानपान

अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...

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November 2024
सदा दिवाली आपकी...
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दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।

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November 2024
'मां' की गोद भी मिले
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'मां' की गोद भी मिले

बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।

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November 2024