कामकाजी दुनिया में एक समान पोस्ट पर काम करने के बावजूद भी दुनिया भर में पुरुष और महिलाओं के वेतन में जमीनआसमान का अंतर होता है। इसे जेंडर-पे-गैप कहा जाता है और इससे आप वाकिफ भी होंगी। पर, क्या आप यह जानती हैं कि दुनिया भर की महिलाएं जेंडर-पेन- गैप से भी जूझ रही हैं। यानी जिस डॉक्टर के पास हम अपनी समस्या का हल पाने की आस लेकर जाते हैं, वे ही महिलाओं को होने वाले दर्द को गंभीरता से नहीं लेते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि हॉस्पिटल के स्टाफ महिलाओं द्वारा दर्द की शिकायत को गंभीरता से नहीं लेते, उनके ट्रीटमेंट में अपेक्षाकृत कम वक्त देते हैं और उन्हें होने वाले शारीरिक दर्द को कई बार उनकी भावुकता से जोड़ देते हैं। कई बार महिलाओं को होने वाले दर्द को लेकर एक्सपर्ट का यह रवैया पीसीओएस या एंडोमेट्रियोसिस जैसी बीमारियों की पहचान में आड़े आ जाता है। युनाइटेड किंगडम के वेलबीईंग ऑफ वुमन चैरिटी द्वारा किए गए एक सर्वे में शामिल 50 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं ने माना कि उनके दर्द को एक्सपर्ट द्वारा कभी-न-कभी अनदेखा किया गया है। दुनिया के अन्य हिस्सों की महिलाओं का भी दर्द से जुड़ा अनुभव कुछ ऐसा ही है।
टने में लगभग एक समान चोट लगने पर विशेषज्ञ महिलाओं की तुलना में पुरुषों को नी-रिप्लेसमेंट सर्जरी का सुझाव दे देते हैं। वहीं, दिल की सेहत के मामले में भी महिलाओं की शिकायत को पुरुषों की तुलना में ज्यादा अनदेखा किया जाता है। महिलाओं को हमेशा ही पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप में कमतर आंका जाता है। ऐसा माना जाता है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं शारीरिक परिश्रम कम कर पाती हैं और उन्हें दर्द भी ज्यादा महसूस होता है। दरअसल, विज्ञान भी इन तथ्यों को सही मानता है। विज्ञान के अनुसार महिलाओं व पुरुषों की शारीरिक बनावट में ऐसे कई अंतर हैं, जिनके कारण महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले दर्द ज्यादा और जल्दी महसूस होता है। क्या हैं ये तथ्य आइए जानते हैं:
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