वोही दौर याद कीजिए जब आप टीनएज में थीं। मन में नया उत्साह, नई उमंग तो थी, लेकिन साथ एक अजीब-सी उलझन, तनाव और चिड़चिड़ापन भी था। उस वक्त आपकी समस्याएं आपको पहाड़-सी लगती थीं। फैंटेसी की दुनिया जितनी बड़ी थी, दिल टूटने का दर्द भी उतना गहरा था। कुछ कर गुजरने के जोश के साथ भविष्य की चिंता भी बड़ी थी। बॉडी शेमिंग, बुलीइंग और न जाने क्याक्या। हार्मोन का बदलाव शरीर और मन दोनों को बदल रहा होगा। आज आपका बच्चा भी उसी दौर से गुजर रहा है। या यूं कहें कि और भी बदले हुए टीनएज से गुजर रहा है। मुमकिन है कि आप उसकी उन समस्याओं और उसे समझ न पा रही हों? या आप समय को दोष देकर या गलत तरह से उन परेशानियों से निपटकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहीं हों? आपके साथ ऐसा न हो, इसके लिए उसे समझने की जरूरत है। बच्चे को कसकर पकड़ने की जगह, थोड़ी ढील देनी होगी। यह उसे सिर्फ समझाने का नहीं, उसे समझने का वक्त है ताकि इस बड़ी उलझन को आसानी से सुलझाया जा सके।
तैयारी है जरूरी
बच्चे को हम उसकी परीक्षाओं के पहले तैयारी करने के लिए तो बोलते हैं, पर जिंदगी के इम्तिहान में कई बार इससे चूक जाते हैं। बिना तैयारी के ही उसे आगे बढ़ने के लिए छोड़ देते हैं। इस बाबत मनोरोग चिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं कि हर चीज का सही वक्त होता है और उस वक्त की आहट के पहले ही हमें बच्चे को उसकी जानकारी दे देनी चाहिए। जैसे बच्चा घर से पहली बार बाहर निकलता है, तो उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव आते हैं या लड़की की बढ़ती उम्र में उसके जेहन में कुछ सवाल कौंध जाते हैं। ऐसा होने के पहले ही हमें उन्हें आने वाले बदलावों या उनकी संभावनाओं से अवगत करा देना चाहिए, तभी तो वह उनसे रूबरू होने पर सही तरीके से निपट पाएंगे।
पहचानें भावों को
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