कुछ बेहद खास उपलब्धि हासिल करने पर अंग्रेजी में कहा जाता है कि फलां ने ग्लास सीलिंग तोड़ दी. लेकिन क्या कभी आपने कांच की छत टूटने की आवाज सुनी है ? शायद नहीं. क्योंकि महिलाएं तो बड़ा से बड़ा मुकाम भी उसी खामोशी और धैर्य के साथ हासिल करती हैं, जैसे वे बिना शोर मचाए अपनी तमाम जिम्मेदारियों को पूरी शिद्दत से निभाती रहती हैं.
अब समय आ गया है. भारत में महिलाएं एक उभरती ताकत बन रही हैं. राजनैतिक मोर्चे पर उनका मत मायने रखने लगा है. चुनावों में महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है, फिर चुनाव चाहे लोकसभा के लिए हों या फिर राज्य विधानसभाओं के लिए. 2019 के आम चुनाव में महिलाओं का मतदान 67.2 फीसद रहा था, और यह आंकड़ा पहली बार पुरुषों की तुलना में कुछ ज्यादा था. जाहिर है कि राजनैतिक दलों ने भी महिला मतदाताओं की ताकत पहचानने में देरी नहीं की है, वे उन्हें गृहलक्ष्मी और लाडली बहना बताकर लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. मुफ्त सिलेंडर और बस यात्रा की पेशकश, यहां तक कि स्वच्छ भारत और हर घर नल कार्यक्रम का भी उन्हें समर्पित होना यही दर्शाता है. इसी सितंबर में महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दी गई, जिसमें उनके लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें सुरक्षित करने का प्रावधान है.
भारत में बुनियादी स्तर की शासन व्यवस्था-जहां पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में 50 फीसद सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं-पहले से ही महिलाओं की अगुआई में बढ़ती संभावनाओं की गवाही दे रही है. गुजरात के जूनागढ़ जिले के जंबूर गांव में 70 वर्षीया हीरबाई इब्राहिम लोबी ने अपनी सिद्दी जनजाति की महिलाओं को सरल वित्तीय साक्षरता सिखाकर उन्हें कुछ हद तक अधिकार संपन्न बना दिया है. वहीं, युवा इंस्टापोएट रूपी कौर हैं, जिनकी रचनाओं पर साहित्य के आलोचक भले ही गौर न करें लेकिन उनके 47 लाख फॉलोअर्स के लिए उनका हर शब्द मायने रखता है. रूपी के शब्दों में "हम सभी तब आगे बढ़ते हैं, जब हम सच में समझ पाते हैं, हमारे आसपास की महिलाओं को, वे कितनी उदार और प्रभावशाली हैं..."
Denne historien er fra January 03, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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