उतरती मई की एक दोपहर में 12 बजे का वक्त होगा. पारा 47 डिग्री को छू रहा था. शेखावाटी झुंझुनूं जिले में चिड़ावा के पास का स्यालू कलां गांव. 14 मई को लेह, लद्दाख में ड्यूटी के दौरान यहीं के अग्निवीर नंदूसिंह शेखावत प्राण त्याग दिए थे. उनके घर के बाहर एक बैनर टंगा था: 'नंदू सिंह शेखावत को शहीद का दर्जा दो'. घर में शेखावत के पिता उमराव सिंह और मां सुनीता कंवर गोद में अपने बेटे की तस्वीर लिए बैठे थे. आंखें नम और चेहरा गमगीन. शेखावत की मौत का जिक्र आते ही पिता की डबडबाई आंखों में गुस्सा तैरने लगा. उन्होंने एक साथ कई सवाल दागे, "मेरा बेटा ड्यूटी करते हुए शहीद हुआ है, उसे अन्य जवानों की तरह शहीद का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा? हमारे आस-पास के गांवों के शहीद दूसरे सैनिकों की पार्थिव देह सेना के वाहनों में घर लाई गई, लेकिन मेरे बेटे की देह को एक सामान्य एंबुलेंस में क्यों भेज दिया गया?" 25 मई को नंदू सिंह का बारहवां था और घर में लोगों की भीड़ जमा थी. हर कोई बस यही पूछ रहा था: नंदू सिंह को शहीद का दर्जा मिलेगा?
काबिलेगौर है कि 14 मई, 2024 को लेह में भारतीय सेना के गोला बारूद डिपो (41 एफएडी) में ट्रेड्समैन मेट के पद पर कार्यरत शेखावत की बम फटने से मौत हो गई थी. वे 20 मार्च, 2023 को लेह में सीधी भर्ती के जरिए अग्निवीर बने थे. उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान गांव में दवाई की व्यवस्था की और कोरोना पॉजिटिव लोगों के लिए क्वारंटीन सेंटर खुलवाया. हाल में ही वे बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा देकर ड्यूटी पर लौटे थे.
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