इंजीनियरिंग, मेडिसिन और मैनेजमेंट के लिए खुले क्रमश: इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) जैसे संस्थानों ने सारा ध्यान अपनी
कामयाबी और नाकामियां
एनएलयू मॉडल की सबसे बड़ी सफलता तो यही है कि वह कानून के अध्ययन के लिए ऊंची प्रतिभा वाले छात्रों को आकर्षित करने में सफल रहा है और यहां स्कूल के बाद सीधे 5 साल में कानून की डिग्री मिलती है. नब्बे के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में एनएलयू का जन्म भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के दौर में हुआ. आर्थिक सुधारों और नवउदारवाद की हवाओं ने कॉर्पोरेट लॉ फर्मों में ऊंची तनख्वाह वाली नौकरियां पैदा करके कई लोगों को आगे बढ़ाया है. वकीलों की एक नई पीढ़ी भारतीय कानूनी क्षेत्र में छा गई है. इन वकीलों ने अदालत में अपने मुवक्किलों के मामलों में दलीलें देने के लिए काला चोगा नहीं पहना. इसके बजाय शानदार कॉर्पोरेट ऑफिस में बैठकर उन्होंने अपने कॉर्पोरेट क्लाइंट्स के करोड़ों डॉलर के समझौते तैयार किए, विलय और अधिग्रहण पर सलाह दी और नजर रखी. वे भारत के जटिल नियामक ढांचे में कारोबारों की मदद के लिए आवश्यक बन गए हैं. इसने महत्वपूर्ण तरीके से पारंपरिक काले कोट वाली ड्रेस की वकीलों की छवि बदल दी जो अदालत के बाहर ग्राहकों की तलाश करते रहते हैं.
ओर खींच लिया. कानून की शिक्षा में एक छोटी क्रांति '90 के दशक में भारत में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (एनएलयू) के साथ शुरू हुई. आज भारत में करीब 25 एनएलयू हैं. इन विश्वविद्यालयों के नाम में 'राष्ट्रीय' शब्द का इस्तेमाल भी अनुपयुक्त है. आइआइटी, आइआइएम और एम्स केंद्रीय कानून के जरिए 'राष्ट्रीय' संस्थान बनाए गए जबकि एनएलयू तो विधानसभाओं में पारित कानूनों से बने हैं. सो तकनीकी रूप से तो ये राज्यों के विश्वविद्यालय हैं.
Denne historien er fra August 07, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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