भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली एक दोराहे पर खड़ी है. इसमें ग्लोबल लीडर बनने की क्षमता है, और उस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति भी हुई है. मगर, अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा तक पहुंच, गुणवत्ता, अनुसंधान और रोजगार की चुनौतियों का समाधान निकालना बेहद जरूरी है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 इन्हीं सुधारों को एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है. इसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में व्यापक स्तर पर बदलावों के लिए अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना, रट्टा मारने वाली शिक्षा पर जोर घटाना और बहु-विषयक पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहित करना है. एनईपी में शिक्षक - छात्र अनुपात में सुधार, अनुसंधान निधि बढ़ाने तथा अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है. हालांकि, आमतौर पर राय यही रही है कि इस नीति को सफलता के साथ लागू करने के लिए सरकार, संस्थानों और निजी क्षेत्र के समन्वित प्रयास जरूरी है.
अपने उच्च शिक्षा के परिदृश्य को बदलने और शिक्षा एवं विकास में बतौर ग्लोबल लीडर अपनी जगह बनाने के लिए भारत को आलोचनात्मक सोच और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा. साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करनी होगी. इस बदलाव की राह आसान बनाने में विश्वविद्यालय ईकोसिस्टम एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. यही आगे चलकर देश की आर्थिक ताकत का निर्धारण करता है.
उदाहरण के तौर पर जापान, सिंगापुर, हांगकांग, ताइवान और दक्षिण कोरिया ऐसे एशियाई देश हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर पहुंच और गुणवत्ता बढ़ाने में खासा निवेश किया है. यह रणनीतिक निवेश ही उनके मध्यम-आय श्रेणी से उबरकर विकास का उन्नत स्तर हासिल करने में मददगार रहा. खासकर, चीन तो 1980 के दशक से ही अपने उच्च शिक्षा क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ढालने की कोशिश में जुटा है, और इसी का नतीजा है कि विश्वविद्यालय रैंकिंग में एशियाई देशों के बीच उसने अपनी शीर्ष स्थिति बना ली है. दूसरी तरफ, भारत को अपने विश्वविद्यालयों को वैश्विक शीर्ष 100 सूची में लाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. समस्या छात्रों की क्षमता नहीं, बल्कि प्रणालीगत है, क्योंकि भारतीय छात्र तो गाहे-बगाहे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी काबिलियत साबित करते रहे हैं.
Denne historien er fra 7th August, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra 7th August, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शादी का म्यूजिकल
फ़ाज़ा जलाली पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल में इस बार भारतीय शादियों पर मजेदार म्यूजिकल कॉमेडी रनअवे ब्राइड्स लेकर हाजिर हुईं
शातिर शटल स्टार
हाल में एक नए फॉर्मेट में इंडोनेशिया में शुरू नई अंतरराष्ट्रीय लीग बैडमिंटन -एक्सएल के पहले संस्करण में शामिल अश्विनी पोनप्पा उसमें खेलने वाली इकलौती भारतीय थीं
पुराने नगीनों का नया नजराना
पुराने दिनों की गुदगुदाने वाली वे सिनेमाई यादें आज के परदे पर कैसी लगेंगी भला ! इसी जिज्ञासा का नतीजा है कि कई पुरानी फिल्में फिर से सिनेमाघरों में रिलीज हो रहीं और दर्शकों को खींचकर ला रहीं
जख्म, जज्बात और आजादी
निखिल आडवाणी के निर्देशन में बनी फ्रीडम ऐट मिडनाइट पर आधारित सीरीज में आजादी की उथल-पुथल से एक मुल्क बनने तक की कहानी
किस गफलत का शिकार हुए बाघ?
15 बाघों की गुमशुदगी के पीछे स्थानीय वन अधिकारियों की ढीली निगरानी व्यवस्था, राजनैतिक दबाव और आंकड़ों की अविश्वसनीयता है
कंप्यूटिंग में नई क्रांति की कवायद
आइआइएससी के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क प्रेरित कंप्यूटिंग की दिशा में लंबी छलांग लगाते हुए एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो न्यूरल सिनेप्सेज की तरह सूचनाओं को प्रोसेस करता है. इसमें रफ्तार, क्षमता और डेटा सुरक्षा की भरपूर संभावना
चीन की चुनौती
जैसे-जैसे भारत और चीन के बीच तनाव कम हो रहा और व्यापार बढ़ रहा है, भारत के सामने सस्ते चीनी आयात को किनारे लगाने तथा घरेलू उद्योग की जरूरतों को प्रोत्साहित करने की कठिन चुनौती
कौन सवारी करेगा मराठा लहर पर
मराठा समुदाय के लोगों में आक्रोश है और मनोज जरांगे - पाटील के असर में मराठवाड़ा 'से आखिरकार यह भी तय हो सकता है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की बाजी किसके हाथ लगेगी
फिर बना सियासत का मर्कज
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 1968 में अजीज बाशा मामले में दिया गया फैसला. भाजपा नेताओं के निशाने पर आया एएमयू, आरक्षण, तालीम पर उठा रहे सवाल
जानलेवा तनाव
भारतीय कंपनियों में गैर - सेहतमंद कार्य - संस्कृति से कर्मचारियों की जान पर बन आई है. इससे वे तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक बीमारियों की चपेट में आ रहे और कई मौकों पर तो यह कल्चर उनके लिए मौत का सबब बन रही