नालंदा विश्वविद्यालय के नवनिर्मित कैंपस के उद्घाटन के मौके पर 19 जून, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, "हम डेवलप्ड कंट्रीज को देखें तो ये पाएंगे, वे इकोनॉमिक और कल्चरल लीडर तब बने, जब वे एजुकेशनल लीडर बने. आज दुनिया भर के स्टूडेंट्स और स्टेट्समेन उन देशों में जाकर वहां पढ़ना चाहते हैं. कभी ऐसी स्थिति हमारे यहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे संस्थानों में हुआ करती थी. इसलिए यह केवल संयोग नहीं है कि जब भारत शिक्षा में आगे था, तब उसका आर्थिक सामर्थ्य भी नई ऊंचाई पर था. यह किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए एक बेसिक रोडमैप है. इसलिए 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य पर काम कर रहा भारत अपने एजुकेशन सेक्टर का कायाकल्प कर रहा है." उनकी बातों से जाहिर था कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर बने इस आधुनिक विश्वविद्यालय को लेकर उनका सपना किस तरह का है.
इस सपने का जिक्र करते हुए लेखक और विचारक प्रेम कुमार मणि कहते हैं, "प्राचीन नालंदा के खंडहरों तक पहुंचकर कभी पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी ऐसा ही सपना देखा था. उनका सपना उनकी बेटी इंदिरा ने जेएनयू की स्थापना करके पूरा किया जो स्थापना के दस साल के भीतर ही दुनिया भर में चर्चित हो गया. लेकिन कोई पंद्रह साल गुजर जाने के बाद आज नालंदा के नवीन केंद्र का क्या हाल है, यह किसी से छुपा नहीं है. दुनिया की तो बात ही छोड़ दीजिए, बिहार के चौबीस विश्वविद्यालयों में भी यह 19वें नंबर पर है. विश्वविद्यालय का महत्व उसके भवन और परिसर से नहीं, ज्ञान और उसकी गुणवत्ता से होता है. इस मामले में यह संस्था कहीं से भी उल्लेखनीय नहीं है. " मणि दरअसल दुनिया भर के 14,131 विश्वविद्यालयों के साइंटिफिक पेपर और साइटेशन का अध्ययन कर, उसके कैंपस और पूर्व छात्रों के बारे में पता कर उन्हें रैंकिंग देने वाली संस्था इडुरैंक के आंकड़ों का जिक्र कर रहे थे. उसके मुताबिक,
Denne historien er fra August 14, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra August 14, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.