श्रीलंका में 2022 में आर्थिक अराजकता के खिलाफ अरागल्या यानी गैर-राजनैतिक जन संघर्ष ने बेहद ताकतवर राजपक्षे बंधुओं को राजनैतिक सत्ता से उखाड़ फेंका. बाद में यही लगा कि यह आंदोलन अपना लक्ष्य हासिल करने के बाद खुद ही बिखर गया है. लेकिन लोगों का सत्ता-विरोधी जोश कतई कम नहीं हुआ, यह बात हाल में संपन्न राष्ट्रपति चुनाव में राजनैतिक व्यवस्था में बड़े उलटफेर के नतीजों से साफ है. अरागल्या का सबसे अधिक फायदा वामपंथी झुकाव वाले नेशनल पीपल्स पावर (एनपीपी) को मिला, जिसमें जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) एक मुख्य घटक है. जेवीपी को उग्र भूमिगत आंदोलन के लिए जाना जाता है, जो समाजवाद के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सशस्त्र संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध था. हालांकि, बाद में यह मुख्यधारा का हिस्सा बन गया. देश के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है जब एनपीपी ने सत्ता संभाली है. राजनैतिक भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाकर राष्ट्र निर्माण करने का वादा करने वाले उसके तेजतर्रार नेता अनुरा कुमार दिसानायके ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
इस जीत में सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि एनपीपी का गठन 2019 में ही हुआ था. उस साल दिसानायके ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था तो उन्हें केवल तीन फीसद वोट मिले थे. लेकिन पांच साल बाद स्थिति एकदम अलग रही. अरागल्या आंदोलन के समर्थक बेतरतीब दाढ़ी वाले इस बेहद मुखर 56 वर्षीय करिश्माई नेता ने पहले दौर की मतगणना में 42.3 फीसद वोट हासिल किए. उनके दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों में से समागी जन बलवेगया (एसजेबी) के सजित प्रेमदास 32.8 फीसद वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे और यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) उम्मीदवार और निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 17.2 फीसद वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
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