घोसी सी उपचुनाव के लिए मतदान से ठीक एक दिन पहले लखनऊ के 10, मॉल एवेन्यू में मेले जैसा दृश्य था। सुबह-सुबह लखनऊ पहुंचे नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को अस्पताल में भर्ती उस महिला सिपाही से मिलने जाना था, जो सरयू एक्सप्रेस में 30 अगस्त की सुबह संदिग्ध परिस्थितियों में खून से लथपथ पाई गई थी। उस सुबह कांग्रेस कार्यालय को तीन तरफ से बैरिकेड लगाकर पुलिस ने घेर रखा था और केवल एक गाड़ी को जाने की अनुमति थी।
यह सूचना लेकर जब कुछ कार्यकर्ता अजय राय के पास पहुंचे तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा, "बोल दीजिए उनसे, हमें रोकेंगे तो टकराहट हो जाएगी। कोई धरना-प्रदर्शन करने हम थोड़े जा रहे हैं! ये वो मत करें, अब पुरानी चीजें नहीं चलेंगी।"
'पुरानी' चीजों से राय का इशारा कुछ महीने पहले तक यूपी कांग्रेस में तकरीबन चलन बन चुकी गिरफ्तारियों और दमन की ओर था, जब कांग्रेस कार्यालय से बाहर कदम रखते ही अध्यक्ष और कार्यकर्ताओं को पुलिस उठा लेती थी। पूर्व पीसीसी अध्यक्ष अजय कुमार 'लल्लू' को लोगों ने राजनीतिक मंचों पर उतना नहीं, जितना सड़क पर पुलिस की लाठी खाते हुए या सिपाहियों के हाथों टंगे हुए देखा था। इसके ठीक उलट, यूपी विधानसभा चुनाव के बाद जब बृजलाल खाबरी को प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया गया, तो सूबे की सड़कें सूनी हो गईं। खाबरी जितना सियासी हलचलों से बेखबर रहे, उतना ही कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने अध्यक्ष से भी बेखबर रहे। बहुजन समाज पार्टी से आयात किए गए अध्यक्ष बृजलाल खाबरी के राज में यूपी कांग्रेस के भीतर संघर्ष का दौर कोई एक साल के लिए ठप पड़ गया था। शायद इसी को देखते हुए एक बार फिर आलाकमान ने बीते 17 अगस्त को नेतृत्व परिवर्तन किया और अजय राय को नया अध्यक्ष बनाया।
घोसी में कांग्रेस समर्थित सपा प्रत्याशी की भारी मार्जिन से हुई जीत दिखाती है कि भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग बिखर रही है
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