हारे तो बड़ी लड़ाई मुश्किल
Outlook Hindi|October 02, 2023
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनाव केंद्र की चुनावी सियासत भी तय करने जा रहे, इसलिए तीनों मुख्यमंत्रियों पर अपने गढ़ को बचाने और देश की अगली राजनीति पर छाप छोड़ने की महती जिम्मेदारी
हरिमोहन मिश्र
हारे तो बड़ी लड़ाई मुश्किल

कुल 65 संसदीय सीटें तीनों राज्य में, 61 भाजपा के पास, चुनौती इसे बरकरार रखने की जबकि कांग्रेस के लिए अच्छी हिस्सेदारी जरूरी

कतई दो राय नहीं कि ऐसे राज्य चुनाव कम ही हुए, जिनसे केंद्र की कुर्सी भी तय होने की संभावनाएं- आशंकाएं जुड़ी हों। दरअसल पांच राज्यों के चुनाव बस ड्योढ़ी पर खड़े हैं। उनमें मिजोरम और के तेलंगाना भी सियासी रंगत और फिजा बदस्तूर बदलेंगे, लेकिन असली लड़ाई के मैदान तो हिंदी पट्टी के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं, जो संसदीय चुनाव के बस अगले ही मोर्चे पर गंभीर असर डाल सकते हैं, या कहें इसके आसार हैं। वजह यह कि उत्तर और पश्चिम भारत की इसी पट्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 2014 से भी ज्यादा 2019 के संसदीय चुनावों में वोट हासिल हुए थे और यहां पार्टी कुछ भी सीटें गंवाने का जोखिम उठाने की हालत में नहीं है। ये वही राज्य हैं, जहां उसका मुकाबला मोटे तौर पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस से है। इन्हीं मैदानों में दोनों पार्टियों के सियासी रंगो-आब का इम्तिहान होना है। इसलिए इन राज्यों के सिपहसालारों पर दोहरी जिम्मेदारी है। पिछली बार 2018 के विधानसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में जीत के बावजूद कांग्रेस संसदीय चुनावों में सूपड़ा साफ करवा चुकी थी, लेकिन आज, 2019 के बाद से नदियों में काफी पानी बह चुका है, हवा का रुख बदला है। ऐसे में दोनों पार्टियों और उनके सेनापतियों के आगे चुनौती यह है कि राज्य चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करके संघीय चुनावों के लिए पुख्ता जमीन तैयार करें।

Denne historien er fra October 02, 2023-utgaven av Outlook Hindi.

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