अब यह गिनवाने का कोई मतलब नहीं है। कि हाल में विश्वकर्मा जयंती पर शुरू हुई। विश्वकर्मा योजना की क्या प्रगति है या पांच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बड़े धूमधाम से शुरू हुई इस योजना की चर्चा चुनाव के दौरान क्यों नहीं हुई। अर्थव्यवस्था में अपने हुनर से योगदान देने वाली और आज की राजनीति में पिछड़ा या ओबीसी में गिनी जाने वाली जातियों के लोगों को उनके काम के लिए सुविधाजनक शर्तों पर पूंजी/ऋण उपलब्ध कराने वाली इस योजना को मोदी सरकार द्वारा विपक्ष के जातिवार जनगणना अभियान की काट के तौर पर पेश किया गया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अदालती लड़ाई जीतकर अपने यहां जातिवार जनगणना कराने (और फिर उसके अनुसार आरक्षण का कोटा बढ़ाने) जैसे फैसले के बाद भाजपा बैकफुट पर लग रही थी। बिहार में तो उसने जातिवार जनगणना का समर्थन किया था, लेकिन विरोध भी उसकी तरफ से ही हुआ। जातिवार जनगणना कराने और उसके आंकड़े प्रकाशित होने के बाद जैसी प्रतिक्रिया बिहार, उत्तर भारत और देश में मिलती लग रही थी उससे नीतीश कुमार ही नहीं, कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी बहुत उत्साहित लग रहे थे।
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
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जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं