राखी के पति सौरभ को कैंसर था. बीते कई सालों से उस का इलाज चल रहा था. नौकरी जा चुकी थी. कीमोथेरैपी के कारण शरीर जीर्णशीर्ण हो गया था. सेहत गिरती जा रही थी. बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. राखी और सौरभ की कोई संतान नहीं थी. सौरभ यह सोच कर परेशान रहता था कि उस के बाद राखी अकेले कैसे रहेगी 2? सौरभ के मातापिता का देहांत कई साल पहले हो गया था. उस के कोई भाईबहन भी नहीं थे, एक दिन उस ने अपनी परेशानी राखी के पिता से कही. कुछ रायमशवरा हुआ और कुछ दिनों बाद लोगों ने देखा कि राखी की गोद में एक नवजात बच्चा है. महल्ले में जिस ने भी पूछा उस को यही बताया गया कि उन्होंने इस बच्चे को गोद लिया है.
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण यानी कारा (सैंट्रल एडौप्शन रिसौर्स अथौरिटी), जिस के नियमों के तहत ही भारत में बच्चे को एडौप्ट किया जाता है, के नियमों के तहत राखी की उस वक्त जो उम्र थी, उस उम्र की महिला किसी नवजात शिशु को एडौप्ट नहीं कर सकती थी. राखी उस वक्त 4] साल की थी और उस के पति सौरभ 44 साल के.
कारा के नियमों के अनुसार इस उम्र के निसंतान दंपती को कारा में रजिस्ट्रशन के उपरांत सभी शर्तों और नियमों के पालन के बाद किसी अनाथ आश्रम से 2 से 4 साल की उम्र का बच्चा मिल सकता था, इस से कम उम्र का नहीं. वह भी तब जब दोनों पतिपत्नी पूरी तरह स्वस्थ हों, आर्थिक रूप से बच्चे की परवरिश करने के लिए सक्षम हों, उन के पास अपनी चलअचल संपत्ति हो और बच्चा एडौप्ट करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों की रजामंदी हो. रजिस्ट्रेशन के बाद भी गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया इतनी धीमी है कि बच्चा मिलने में 4 से 6 साल का समय लग जाता है.
जाहिर है, इन में से कोई भी नियम या शर्त राखी और सौरभ पूरी नहीं करते थे. उन्होंने बच्चा किसी दलाल के माध्यम से खरीदा था. उस बच्चे के आने के 6 महीने बाद ही सौरभ की मृत्यु हो गई. इस बात को अब १2 साल बीत चुके हैं. राखी का बेटा भी 2 साल का हो चुका है. वह रोज मां की उंगली थाम कर स्कूल जाता है. बाजार में मां के साथ घूमता और चीजों की फरमाइश करता नजर आता है. दोनों के बीच जो अथाह प्यार है उस को देख कर कोई कह भी नहीं सकता कि राखी उस की सगी मां नहीं है.
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